Book Title: Madhyam vrutti vachuribhyamlankrut Siddhahemshabdanushasan Part 02
Author(s): Rajshekharvijay
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandir

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Page 632
________________ 572 ] श्रीसिद्धहेमशब्दानुशासन सूत्राणामकाराद्यनुक्रमणिका रथवदे। 3 / 2 / 131 // रुहः पः। 4 / 2 / 14 // लीडलिनो-पि। 3 / 3 / 90 / / रथात्सादेश्च वोढने / 6 / 3 / 17 / / रूढावन्तःपुरादिकः।६।३।१४०॥ लीलिनोर्वा / 4 / 2 / 9 // रदादमूर्छम-च / 4 / 2 / 69 / / रूपात्प्रशस्ताहतात् / / 2 / 54 // लुक् / 1 / 3 / 13 // रध इटि तु-व / 4 / 4 / 101 / / रूप्योत्तरपदारण्याण्णः / 6 / 3 / 22 / / लुक्चाजिनान्तात् / 7 / 3 / 39|| रभलभशक-मिः।४।१।२१॥ रेवतरोहिणाद् भे / 2 / 4 / 26 / / लुक्युत्तरपदस्य कप्न् 7338 // रभोऽपरोक्षाशवि / 4 / 4 / 102 // रेवत्यादेरिकण / 6 / 1 / 86 / / लुगस्यादेत्यपदे / 2 / 1 / 113 // रम्यादिम्यः -रि।५।३।१२६।। रैवतिकादेरीयः।६।३। 170 // लुगातोऽनापः / 2 / 1 / 107 / / रवर्णान्नो-रे / 2 / 3 / 63 // रोः काम्ये / 2 / 3 / 7 // लुप्यय्वृल्लेनत् / 7 / 4 / 112 / / रहस्यमर्या-गे / 7 / 4 / 83 / / रोगात्प्रतीकारे।७।२।८२॥ लुबञ्चेः / 7 / 2 / 123 // रागाट्टो रक्ते / 6 / 2 / 1 // रोपान्त्यात् / 6 / 3 / 42 // लुब् बहुलं पुष्पमूले / 6 / 2057 / / राजघः / 5 / 1 / 88 // रोमन्थाद् व्याप्या-णे / 3 / 4 / 32 // लुब्वाध्यायानुवाके। 72 72 // राजदन्तादिषु / 3 / 1 / 149 // रोरुपसर्गात् / 5 / 3 // 22 // / लुभ्यञ्चेर्विमोहाचें / 4 / 4 / 44 // / ' राजन्यादिभ्योऽकत्र 62 / 66|| रो रे लुग्-तः / 1 / 3 / 41 // | लूधूसू-र्तेः / 5 / 2 / 87 / / राजन्वान् सुराज्ञि।२।१। 98 // रोयः / 1 / 3 / 26 // . लूनवियातात् पशी / 7 / 3 / 21 / / राजन्सखेः / 7 / 3 / 106 // रो लुप्यरि।२।१।७५ // लोकंपृणम-त्नम् / 3 / 2 / 113 // रात्रौ वसो-द्य।५।२।६॥ रोऽश्मादेः।६।२। 79 // लोकज्ञाते-र्थे / 7 / 4 / 84 // राज्यहःसं-वा।६।४।११०॥ नाम्यन्तात्-ढः / 2 / 2 / 80 // लोकसर्व-ते / 6 / 4 / 157 / / रात्सः / 2 / 1 / 90 // लो वा / 1 / 4 / 67 // लोकान् / 1 / 1 / 3 / / रादेफः / 7 / 2 / 157 / / हादर्हस्व-वा। 1 / 3 / 31 // लोमपिच्छादेः शेलम् / 7 / 2 / 28 / / राधेर्वधे / 4 / 1 / 22 // लक्षणवीप्स्येना।२।२।३६।। लोम्नोऽपत्येषु। 6 / 1 / 23 // राल्लुक / 4 / 1 / 11 / / लक्षणेनाभि-ख्ये।३।१३३॥ लोलः / 4 / 2 / 16 // राष्ट्रक्षत्रियात्-रब् / 6 / 1114|| लक्ष्म्या अनः / 7 / 2 / 32 / लोहितादिश-त् / 2 / 4 / 68|| राष्ट्राख्यात् ब्रह्मणः / 13 / 107 // लघोभोऽस्वरादेः।४। श६४॥ लोहितान्मणौ / 7 / 3 / 17 / / राष्ट्रादियः / 6 / 3 / 3 // लघोरुपान्त्यस्य / 4 / 3 / 4 // वंशादेर्भा-त्सु / 6 / 4 / 166 / / राष्ट्रऽनङ्गादिभ्यः / 6 / 2 / 65 / / लघोर्यपि।४।३।८६॥ वंश्यज्यायो-वा।६।१।३।। राष्ट्रभ्यः / 6 / 3 / 44 // लव्वक्षरास-कम् / 3 / 1 / 160 / / / वंश्येन पूर्वार्थे / 3 / 1 / 29 // रिः शक्याशीर्ये / 4 / 3 / 110 // लङ्गिकम्प्यो -त्योः / 4 / 2 / 47 / / वचोऽशब्दनाम्नि / 4 / 1 / 119 / / रिति / 3 / 2 / 58 // लभः / .4 / 4 / 103 / / वश्वस्रसध्वंस-नीः।४।११५०॥ रिरिष्टात्-ता। 2 / 2 / 82 // ललाटवात-कः।५।१।१२५॥ वटकादिन् / 7 / 1 / 196 / / रिरौ च लुपि / 4 / 1 / 56 // लवणादः / 6 / 4 / 6 // वतण्डात् / 6 / 1 / 45 // रुचिकृप्य-षु / 2 / 2 / 55 // लषपतपदः।५।२४१॥ बत्तस्याम् / 1 / 1 / 34 // रुच्याव्यथ्यवास्तव्यम् ।५।१शक्षा लाक्षारोचनादिकण / 6 / 2 / 2 / / वत्सशालाद्वा।६।३।१११ // रुजार्थस्या-रि।२।२।१३ // लिप्स्यसिद्धौ। 5 / 3 / 10 // वत्सोक्षाश्व-पित् / 7 / 3 / 511 // रुत्पश्चकाच्छिदयः / 4 / 4 / 88 // लिम्पविन्दः / 5 / 1 / 60 // वदव्रजलः।४।३।४८॥ . रुदविदमुष-च / 4 / 3 / 32 // लियो नोऽन्तः-वे / 4 / 2 // 15 // बदोऽपात् / 3 / 3 / 97 // रुधः / 3 / 4 / 89 // लि लौ। 1 / 3 / 65 // वन्यापश्चमस्य / 4 / 2 / 65 / / रुधां स्वराच्छनो-च / / 4 / 82 // | लिहादिभ्यः / 5 / 1 / 50 // / वमि वा / 2 / 3 / 83 //

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