Book Title: Madhyam vrutti vachuribhyamlankrut Siddhahemshabdanushasan Part 02
Author(s): Rajshekharvijay
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandir

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Page 631
________________ सूत्राणामकाराद्यनुक्रमणिका ] मध्यमवृत्त्यवचूरिसंवलितम् / मूल्यैः क्रीते / 6 / 4 / 150 // / यत्तत्किमन्यात् / 7 / 3 / 53 // | युजभुजभज-नः / 5 / 2 / 50 // मृगक्षीरादिषु वा / 3 / 2 / 62 // यत्तदेतदो डावादिः / 7 / 1 / 149 / / | युजादेवा / 3 / 4 / 18 // मृगयेच्छायाच्या०५३।१०।। यथाकथाचाण्णः / 6 / 4 / 100 / युनोऽसमासे / 1 / 4 / 71 // मृजोऽस्य वृद्धिः / 4 / 3 / 42 // यथाकामा-नि।७।१।१००॥ युदुद्रोः / 5 / 3 / 59 // मृदस्तिकः / 7 / 2 / 171 / / यथातथादीर्योत्तरे / 5 / 4 // 51 // 5 / 3 / 54 // मृषः क्षान्तौ। 4 / 3 / 28 // यथाऽथा / 3 / 1 / 41 // युवर्णवृदृवश-हः / 5 / 3 / 28 / / मेघर्तिभया-खः / 5 / 1 / 106 / / | यथामुख-स्मिन् / 7 / 1.93 // युववृद्वं कुत्सार्च वा / 6 / 1 / / मेको वा मित। 4 / 3 / 88 // . यद्भावो भावलक्षणम् / 2 / 2 / 106 / / / युवा खलति-नैः / 3 / 1 / 113 / / मेधारथान्नवेरः / 7 / 2 / 41 // यभेदेस्तद्वदाख्या / 2 / 2 / 46 / / युवादेरण।७।१।६७ // मोऽकमियमिरमि०।४।३।५५।। . यद्वीक्ष्ये राधीक्षी / 2 / 2 / 58 // युष्मदस्मदोः / 2 / 1 / 6 // मो नोम्बोश्च 12 / 1 / 67 // यपि / 4 / 2 / 56 // युष्मदस्मदो-देः / 7 / 3 // 30 // मोर्वा / 2 / 1 / 9 // यपि चादो जग्ध् / 4 / 4 / 16 // यूनस्तिः / 2 / 4 / 77 // मोऽवर्णस्य / 2 / 1 / 45 // यबक्छिति / 4 / 2 / 7 // यूनि लुप् / 6 / 1 / 137 // मौदादिभ्यः / 6 / 3 / 182 . यमः सूचने / 4 / 3 / 39 / / यूनोऽके / 7 / 4 / 50 // म्नां धुड-न्ते। 1 / 3 / 69 // यमः स्वीकारे / 3 / 3 / 59 // - यूयं वयं जसा / 2 / 1 / 13 / / म्रियतेरद्यत-च।३।३।४२॥ यममदगदोऽनुपस० / 5 / 1 / 30 / / ये नवा / 4 / 2 / 62 / / य एश्चातः / 5 / 1 / 28 / / यमिरमिनमिगमि० / 4 / 2 / 55 / / येयौ च लक च 7 / 1 / 164 // यः।६।३। 176 // यमिरमिनम्या-श्व / 4 / 4 / 86|| येऽवणे / 3 / 2 / 100 / / यः। 7 / 1 / 1 // यमोऽपरिवे-च।४।२।२९ // यैयकमावसमासे वा / 6 / 1 / 97 // यः सप्तम्याः / 4 / 2 / 122 // यरलवा अन्तस्थाः / 1 / 1 / 1 / / योगकर्मभ्यां योको 64 / 9 / / यतुरुस्तोर्बहुलम् / 4 / 3 / 64 // यवयवक-द्यः।७।१।८१॥ योग्यतावीप्सा-श्ये / 3 / / 40 // यजसृज-षः / 2 / 1 / 87 // / यवयवनार-त्वे / 2 / 4 / 65 / / / योद्धृप्रयोजनाद् युद्धे।६।।११।। यजादिवचेः किति।४।१७९|| यश्चोरसः।६।३। 212 / / योऽनेकस्वरस्य / 2 / 1 / 56 / / यजादिवश-यवृत् / 4 / 1 / 72 / / यस्कादेर्गोत्रे / 6 / 1 / 125 // योपान्त्या-नन् / 7 / 1 / 72 / / यजिजपिदंशि-कः / 5 / 2 / 47 // यस्वर पा-टि।२।१ / 102 // / योऽशिति / 4 / 3 / 80 // यजिस्वपिरक्षि-नः।५।३८५।। याचितापमित्यात्कण् / 6 / 4 / 22 / / यौधेयादेब।७।३।६५॥ यजेर्यज्ञाङ्गे / 4 / 1 / 114 // | याजकादिभिः / 3 / 1 / 78 // व्यक्ये।१।२।२५ // यज्ञादियः।६।४। 179 / / / याज्ञिकौक्थिक-कम् / 62 / 122 // यवः पदान्तात्-दौत् / 7 / 4 / 5 // यज्ञानां दक्षिणायाम् / 6496 / / याज्या दानर्चि / 5 / 1 / 26 / / / यवृत सकृत् / 4 / 1 / 102 / / यज्ञे ग्रहः / 5 / 3 / 65 // याम्युसोरियमियुसौ / 4 / 2 / 123 / / वृवर्णाल्लघ्वादेः / 7 / 1 / 69 / / यज्ञे ञ्यः / 6 / 3 / 134 // यायावरः / 5 / 2 / 82 // ययोः प्य यञ्जने० / 4 / 4 / 121 / / यवञोऽश्या-देः।।१।१२६।। यावतो विन्दजीवः / 5 / 4 / 55 // र. कखप-पौ / 1 / 3 / 5 // यविनः।६।१।५४॥ यावदियत्त्वे / 3 / 1 / 31 // रः पदान्ते / 1 / 3 / 53 / / यत्रो डायन च वा / 2 / 4 / 67|| यावादिभ्यः कः / 7 / 3 / 15 // रक्तानित्यवर्णयोः / 7 / 3 / 18 / / यतः प्रतिनि-ना। 2 / 2 / 72 / / / यिः सन्वेयः / 4 / 1 / 11 // | रक्षञ्छतोः। 6 / 4 / 30 / / यत्कर्मस्पर्शात्-तः / 5 / 3 // 125 / / | यि लुक् / 4 / 2 / 102 // रङ्कोः प्राणिनि वा / 6 / 3 / 15 / / यत्तत्किमःा 17 / 1 / 150 // / युजनकञ्चो नो छः / 2 / 1171 / / ' रजःफलेमलाद् ग्रहः / / 1 / 9 / / HEARTHRELHI

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