Book Title: Madhyam vrutti vachuribhyamlankrut Siddhahemshabdanushasan Part 02
Author(s): Rajshekharvijay
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandir
________________ सूत्राणामकाराद्यनुक्रमणिका ] श्रीसिद्धहेमशब्दानुशासनम्। [580 स्थो वा / 5 / 3 / 96|| स्वराच्छौ ।श४६शा हनृतः०।४।४।४९॥ | हक्रोर्नवा / 2 / 28 // स्नाताद् / 7 / 3 / 22 / / / स्वरात् / 2 / 3 / 85 / / हनो घि / 2 / 3 / 94 // हृगो गत 33 // 38 // स्नानस्य० // 2 / 3 / 22 स्वरादयो० // 1 // 1 // 30 // हनोध्नी०।४।३।९९॥ हगो वयो० / / 1 / 9 / / स्नोः / 4 / 4 / 52 / / स्वरादुतो०।२।४॥३५॥ हनो णिन् / / 1 / 160 हृदयस्य०।३।२।९४|| स्पर्द्ध / 7 / 4 / 119 / / / स्वरादुप० // 414 / 9 / / हनोऽन्त० // 5 // 3 // 34 / / हृद्भग०७४१२५।। स्पृशमृश० 3 / 4 / 54 // | स्वरादेर्द्वि०।४।१।४॥ हनो वध।४।४।२१।। हृद्य-पद्य०७।१।११॥ स्पृशादि० / 4 / 4 / 112 / / स्वरादेस्तासु।४।४।३२॥ हनो वा०५३४६।। हृषे:०।४।४१७६|| स्पृशोऽ० / 5 / 1 / 149 // स्वरेऽतः / 4 / 3 / 75|| हनो इनो०।२।१।११२। हेः प्रश्ना०1७।४।९७॥ स्पृहेा / 2 / 2 / 26 // स्वरेभ्यः / 113 // 30 // हरत्यु०।६।४।२३॥ हेतु-कर्तृ / / 2 / 44 // स्फाय स्फाव।४।२।२२॥ स्वरे वा / 11324 // हरितादे०।६१५५॥ हेतुतच्छी०।५।११०३॥ स्फायः स्फी०।४।१९४|| स्वरे बा० श२।२९॥ हलक्रोडा० / 5 / 289 // हेतु-सहा०।२।२।३८|| स्फुरस्फु०।४।२।४॥ | स्वर्ग०६४१२३।। हलसीरादिकण।७.१।६।। हेतौ संयो०।६।४।१५३ . स्मिकः / 3391 // / स्वस०।३।२।३८|| हलसीरा०॥६॥३॥१६॥ | हेत्वर्थे० / 2 / 2 / 118 // स्मृत्यर्थ / 2 / 2 / 11 // स्वस्नेहा० // 14 // 6 // हलस्य० 171126 // हेमन्ताद्वा०६।३।९।। स्मृह० 4 / 2 / 65 / / स्वाङ्गत०५।४।८६|| हवः शिति / 4 / 1 / 12 / / हेमादि०।६।२।४५।। स्मृदृशः / 3 / 3 / 72 / / स्वाङ्गात्०३।२।५६॥ हविरन्न०७१२९॥ हेमार्थात्६।२।४२॥ स्मे च० / 5 / 2 / 16 / / स्वाङ्गादे०।२।४॥४६॥ हविष्य० / / 2 / 73 // हेहैष्वे०७४।१००। स्मे पश्चमी।५।४।३।। स्वाङ्गाद्वि०७२।१०॥ हशश्व० / / 2 / 12 // * होत्राभ्य०७११७६।। स्म्यजस०५।२।७९॥ स्त्राङ्गना०४४७९॥ हशिटो०।३।४।५५| होत्राया०७२।१६३॥ स्यदो जवे / 4 / 2 / 53 // स्वाङ्गेषु०७१।१८०॥ हस्त-दन्त०७२।६८॥ हो धु०।२।११८२॥ स्यादाव०३।१।११९॥ स्वादे:०।३।४।७५|| . हस्तप्राप्ये / / 3 / 78|| हौ दः / 451 // 31 // स्यादेरिवे / 7 / 1152 / / स्वाद्वा०॥५॥४५३॥ हस्तात् / / 4 / 66 / / ह्रस्वः / 4 / 039 // स्यादौ वः / 2 / 1157 // स्वान्मि० 2 / 49|| हस्तिपु०७।१११४१।। ह्रस्वस्य गुणः।१।४।४१ स्यौजस० 121 // 18 // स्वामिचि 312184|| हस्ति-बा० / / 1186 / / ह्रस्व-स:०।४।४।११३।। स्त्रंसध्वंस्०।२।१।६८।। स्वामिवै० / 5 / 1 // 33 // हाकः / 4 / 2 / 10 // ह्रस्वात्।।१।३।२७॥ स्वञ्जश्च / 2 / 3 / 45 // स्वामीश्व०१२।२।९८॥ हाको हिः०१४॥४॥१४॥ ह्रस्वान्ना० 2 / 334|| स्व जे०।४।३।२२।। स्वाम्येऽधिः / / 1113 // हान्तस्था० // 2 // 28 // ह्रस्वापश्च / 1 / 4 / 32 / / स्वज्ञाऽज०।२।४।१०८॥ स्वार्थे / 4 / 4160 // हायना०७१।६८|| ह्रस्व // 3 // 46|| स्वतन्त्रः कर्ता / / 2 / 2 / स्वेशेऽ०।२।२।१०४॥ हितनाम्नो०१७।४।६०॥ ह्रस्वोऽ०।१२।२२।। स्वपेर्यङ् च / 4 / 1 / 8 / / स्वैर० / 1 / 2 / 15|| हित-सुखा०।२।२।६५॥ ह्यस्तनी०।३।३।९॥ स्वपो णावुः / 4 1 / 62 / / स्सटि समः।१।३।१२।। हितादिभिः।३।११७१॥ ह्योगोदो०।६।२।५५॥ स्वयंसामी०।३।११५८॥ हः काल०1शश६८|| हिम-हति०।३।२।९६॥ ह्लादो०।४।२।६७।। स्वरग्रह० // 3 // 4 // 6 // हत्याभूयं० / 5 / 1 // 36 // हिमादे० 7160 // हः समा० ।।३।४शा स्वरदुहो० // 3 / 4 / 90 // हनः / 2 / 3 / 82 // हिंसा० // 4474 // हः स्पर्धे।३।३।५६॥ स्वरस्य०७४।११०॥ हनः सिच् / 4 / 3 / 38 // हीनात्० 7 / 2 / 4 / / ह्वा-लिप०३।४।६२॥ स्वर-हन०।४।१।१०४।। हनश्च० / 5 / 4 / 63 // / हुधुटो० / 4 / 2 / 83|| / ह्विणोर०।४।३।१५॥ इति सूत्राणामकाराद्यनुक्रमणिका समाप्ता
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