Book Title: Madhyam vrutti vachuribhyamlankrut Siddhahemshabdanushasan Part 02
Author(s): Rajshekharvijay
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandir

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Page 635
________________ सूत्राणामकाराधनुक्रमणिका ] मध्यमवृत्त्यत्रचूरिसंवलितम् / वोपादेरडाकौ च / 7 // 3 // 36 // | व्यस्ताच क्र-कः / 6 / 4 / 16 // | शकितकिचति-त् / 5 / 1 / 29 // वोमाभङ्गातिलात् / 7 / / 1 / 83 // व्यस्थवणवि।४।२।३॥ शकृत्स्तम्बाद्-गः / 5 / 1 / 100 // वोर्णगः सेटि / 4 / 3 / 46 // व्याघ्राघ्र प्रा-सोः। 5 / 1157 // शकोऽजिज्ञासायाम् / 3 / 373 // पोर्णोः।४।३।१९॥ व्यापरे रमः / 3 / 3 / 105 / / शक्तार्थवषट्नमः-भिः / / 2 / 68|| वोर्णोः / 4 / 3 / 60 // व्यादिभ्यो णिकेकणौ / 6 / 3 / 34 // शक्तार्हे कृत्याश्च / 5 / 4 / 35 / / वोर्ध्व द-सट् / 7 / 1 / 142 // व्याप्तौ / 3 / 1 / 61 // शक्तियष्टेटीकण / 6 / 4 / 64 // वोर्ध्वान् / 7 / 3 / 156 // व्याप्तौ स्सात् / 7 / 2 / 130 // शक्तेः शस्त्र / 2 / 4 / 34 // वो विधूनने जः / 4 / 2 / 19 / / व्याप्याच्चेवात् / 5 / 4 / 71 / / शकूत्तर-च।६।४। 90 // वोशनसो-सौ / 1 / 4 / 80 // व्याप्यादाधार / 5 / 3 / 88 // | शण्डिकादेयः। 6 / 3 / 215 / / बोशीनरेषु / 6 / 3 / 37 // व्याप्ये क्तेनः / 2 / 2 / 99 // शतरुद्रात्तौ।६।२।१०४ // वो वर्तिका / 2 / 4 / 110 // व्याप्ये घुरके-च्यम् / 5 / 1 / 4 / / शतषष्ठः पथ इकण / 6 / 2 / 124|| वौ विष्करो वा / 4 / 4 / 96 // | व्याप्ये द्विद्रो-याम् / 2 / 2 / 50||| शतात्केव-की।६।४ / 131 / / वौ व्यञ्जनादे:-य्वः। 4 / 3 / 25 / / व्याश्रये तसुः / 7 / 2 / 81 // / शतादिमासा-रात् / जाश१५७|| बौठौतौ-से। 1 / 2 / 17 // व्यासवरुट-चाक् / 6 / 1138|| शताद्यः।६।४। 145 // व्यः / 4 / 1 / 77 // व्याहरति मृगे।६।३। 121 // शत्रानशावे-स्यौ / 5 / 2 / 20 // व्यक्तवाचां सहोती।३३७९| व्युदः काकु-लुक् / 7 / 3 / 165 / / शदिरगतौ शात् / 4 / 2 / 23 // व्यचोऽनसि / 4 / 1 / 82 // व्युदस्तपः / 3 / 3 / 87 // शदेः शिति।३।३।४१ / / व्यञ्जनस्या-लुक् / 4 / 1 / 44 // व्युपाच्छीकः / 5 / 3 / 77 // शनशद्विशतेः / 7 / 1 / 146 / / व्यञ्जनस्यान्त ई / 7 / 2 / 129 / / व्युष्टादिष्वण / 6 / 4 / 99 // शप उपलम्भने।३।३।३५ / / व्यञ्जनान्छनाहेरानः / 3 / 4 / 80 // व्यस्यमोर्यकि / 4 / 1 / 85 / / शपभरद्वाजादात्रेये।६। 1150|| व्यञ्जनात्तद्धितस्य / 2 / 4 / 88 // व्योः / 1 / 3 / 23 / / शब्दनिष्कघोषमि०।३।२।९८॥ व्यञ्जनात्प-वा / 1 / 3 / 47 // व्रताद् भुजितन्निवृत्त्योः / 3 / 4 / 4 / / शब्दादेः कृतौ वा / 3 / 4 / 35 // व्यञ्जनादेरेक-वा।३।४।९॥ व्रताभीक्षाये / 5 / 1 / 157 // शमकान-ण / 5 / 2 / 49 // व्यसनादन म्युपा० / 2 / 3 / 87 // वातादस्त्रियाम् / 7 / 3 / 61 // / शमो दर्शने / 4 / 2 / 28 // व्यञ्जनादेवो-तः / 4 / 3 / 4 // बातादीनन् / 6 / 4 / 19 // शमो नाम्न्यः / 5 / 1 / 134 / / व्यञ्जनाद् घञ् / 5 / 3 / 132 // व्रीहिशालेरेयण / 7 / 1 / 80 // शम्या रुरो।७।३।४८॥ व्यञ्जनाद् देः सश्च दः / 4 / 3178 // ब्रीहेः पुरोडाशे / 6 / 2 / 51 // शम्या लः / 6 / 2 / 34 // व्यञ्जनानामनिटि / 4 / 3 / 45|| ब्रीह्यर्थतुन्दा-श्व / 7 / 2 / 9 // शम्सप्तकस्य श्ये / 4 / 2 / 11 / / व्यञ्जनान्तस्था-ध्यः ।४।२।७शा ब्रीह्यादिभ्यस्तौ / 7 // 25 // शयवासिषासे-त् / 3 / 2 / 25|| व्यञ्जनेभ्य उपसिक्ते / 6 / 4 // 8 // शंसंस्वयं-दुः। 5 / 2 / 84 // शरदः श्राद्ध कर्मणि / 6 / 3 / 8 / / व्यतिहारेऽनीहा-नः / 5 / 3 / 116 / / शंसिप्रत्ययात् / 5 / 3 / 10 / / शरदर्भकूदी-जात् / 6 / 2 / 47|| व्यत्यये लुग्वा / 1 / 3 / 56 // शकः कर्मणि / 4 / 4 / 73 // शरदादेः / 7 / 3 / 92 / / व्यधजपमद्भयः / 5 / 3 / 47 // शकषज्ञारभू-तुम् / 5 / 4 / 90 // शर्करादेरण् / 7 / 1 / 118 / / व्यपाभेर्लषः / 5 / 2 / 60 // शकटादण् / 7 / 1 / 7 // शर्कराया इक-एच / 6 / 2178|| व्ययोद्रोः करणे / 5 / 3 / 38 // शकलकर्दमाद्वा / 6 / 2 / 3 / / शलालु वा / 6 / 4 / 56 // व्यवात्स्वनो-शने / 2 / 3 / 43 / / शकलादेर्यम् / 6 / 3 / 27 // | शबसे श-वा / 1 / 3 // 6 // व्यस्तव्यत्यस्तात्। 6 / 3 / 7 // / शकादिभ्यो ट्रेलु।६।१।१२०॥ शसोऽता-सि / 1 / 4 / 49 //

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