Book Title: Madhyam vrutti vachuribhyamlankrut Siddhahemshabdanushasan Part 02
Author(s): Rajshekharvijay
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandir

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Page 634
________________ "574 / श्रीसिद्धहेमशब्दानुशासन [सूत्राणामकाराधनुक्रमणिका - वाह्याद्वाहनस्य / 2 / 3 / 72 // / विशिरुहि-दात / 6 / 4 / 122 // वेगे सर्तेर्धाव / 4 / 2 / 107 // विंशतिकात् / 6 / 4 / 139 / / विशेषणे वि-श्व / 3 / 1 / 96 // वेटोऽपतः / 4 / 4 / 62 / / विशते-ति / 7 / 4 / 67 // विशेषणमन्तः / 7 / 4 / 113 // | वेणुकादिभ्य ईयण / 6 / 3 / 66 / / विंशत्यादयः / 6 / 4 / 173 // विशेषणस-हौ।३।१।१५०॥ वेतनादेर्जीवति / 6 / 4 / 15 // विंशत्यादेर्वा तमट् / 7111156 // विशेषाविव-श्रे। 5 / 2 / 5 // | वेत्तिच्छिदभिदः कित् / 5 / 2 / 7 / / विकर्णकुषीत-पे।६।१।७५ // विश्रमेवा / 4 / 3 / 56 / / वेत्तेः कित् / 3 / 4 / 51 // विकर्णच्छगला-ये। 6 / 164 // विष्वचो विषुश्च / 7 / 2 / 31 // / वेत्तेर्नवा / 4 / 2 / 116 / / विचारे / 6 / 2 / 30 // विसारिणो मत्स्ये / 7 / 3 / 59|| -नाम् / 3 / 2 / 41 // . विकुशमिपरे:-स्य / 2 / 3 / 28 // वीप्सायाम् / 7 / 4 / 80 // वेदूतोऽनव्य-दे।२।४ / 98 // विचारे पूर्वस्य / 7 / 4 / 95 // वीरुन्न्यग्रोधौ / 4 / 1 / 121 // वेदेन्ब्राह्मणमत्रैव / 6 / 2 / 130 // विचाले च / 7 / 2 / 105 // / वृकाटेण्यण / 7 / 3 / 64 // वेयिवदनाश्व-नमः।५।२।३।। विच्छो नङ / 5 / 3 / 18 // वृगो वने / 5 / 3 / 52 // वेयुवोऽस्त्रियाः। 1 / 4 / 30 / / विजेरिट् / 4 / 3 / 18 // वृजिमद्रादे शात्कः / 6 / 3 / 38 // वेरयः / 4 / 1 / 74 // वित्तं धनप्रतीतम् / 4 / 2 / 82 // वृत्तिसर्गतायने / 3 / 3 / 48 // वेरशब्दे प्रथने / 5 / 3 / 69 // विदुदृग्भ्यः -णम् / 5 / 4 // 54 // वृत्तोऽपपाठोऽनुयोगे।६।४।६७॥ येर्दहः / 5 / 2 / 64 // विद्यायोनिसम्बन्धे।३। 3.150 // वृत्त्यन्तोऽसषे। 1 / 1 / 25 // | वेर्वय / 4 / 4 / 19 / / विधिनिमन्त्रणा-ने / 5 / 4 / 28 // वृद्धस्त्रियाः-णश्च / 6 / 1 / 87 // वेर्विचकत्थ-नः।५।२। 59 // विध्यत्यनन्येन / 7 / 1 / 8 // / वृद्धस्य च ज्यः / 7 / 4 / 35 / / विस्तृते-टौ।७।१।१२३ // विनयादिभ्यः / 7 / 2 / 169 / / | वृद्धाधुनि / 6 / 1 / 30 // वेश्च द्रोः / 5 / 2 / 54 // विना ते तृतीया च / 1 / 2 / 115 / / वृद्धिः स्वरेष्वा-ते / 7 / 4 / 1 // वेष्टयादिभ्यः। 6 / 4 / 65 / / विनिमेयधूतपणं-ह्रोः / 2 / 2 / 16 // वृद्धिरारदौत् / 3 / 3 / 1 // | वेसुसोऽपेक्षायाम् / 2 / 3 / 11 / / विन्द्विच्छू।५।२।३४॥ वृद्धिर्यस्य स्व-दिः।६।१।८॥ वैकत्र द्वयोः / 2 / 2 / 85 // विन्मतोर्णीष्ठ --लुप् / 7 / 4 / 30 // वृद्धवः / 6 / 3 / 28 // वैकव्यञ्जने पर्ये / 3 / 2 / 105 / / विपरिप्रात्सर्तेः।५।२। 55 // . वृद्धो यूना तन्मात्रभेदे / 3 / 1 / 124 // वैकान् / 7 // 3 // 55 // . . किभक्तिथ-भाः। 1 / 1 / 33 / / वृभिक्षिलुण्टि-कः / 5 / 2 / 70 / / / वैकात्-रः / 7 / 3 / 52 // विभक्तिसमीप-यम् / 3 / 1 / 39|| वृद्भयः स्यसनोः / 3 / 3 / 45 // वैकाद् ध्यमञ्। 7 / 2 / 106 / / विभाजयित-च।६।४।५२॥ वृन्दादारकः / 7 / 2 / 11 // वैडूर्यः / 6 / 3 / 158 // विमुक्तादेरण् / 7 / 2 / 73 // वृन्दारकनागकुञ्जरैः / 3 / 1 / 108 // वैणे क्वणः / 5 / 3 / 27 // वियः प्रजने / 4 / 2 / 13 // वृषाश्वान्मैथुने स्सो० // 4 / 3114 // वोतात् प्राक / 5 / 4 / 11 // विरागाद्विरङ्गश्च / 6 / 4 / 18 / / / वृष्णिमान-या। 5 / 4 / 57 / / / बोत्तरपद-ह्नः।२।३ / 75 / / विरामे वा।१।३। 51 // वतो नवाऽना-च / 4 / 4 / 35 / / वोत्तरपदेऽर्धे / 7 / 2 / 125 / / विरोधिनाम-स्वैः / 3 / 1130 // वेः।२।३।५४ / / वोत्तरात् / 7 / 2 / 121 // विवधवीवधाद्वा।६।४ / 25 // वेः कृगः-शे / 3 / 3 / 85 / / बोदः। 5 / 3 / 61 / / विवादे वा।३।३। 80 // वेः खुखग्रम / 7 / 3 / 163 // वोदश्वितः।६।२।१४४॥ विवाहे द्वन्द्वादकल / 6 / 3 / 163|| वेः स्कन्दोऽक्तयोः।२।३।५॥ वोपकादेः।६।१।१३०॥ विशपतपद-क्ष्ण्ये / 5 / 4 / 8 / / वेः स्त्रः / 2 / 3 / 23 / / वोपमानात् / 7 / 3 / 147 // .विशाखाषा-ण्डे / 6 / 4 / 120 // वेः स्वार्थे / 3 / 3 / 50 // वोपात् / 3 / 3 / 106 / /

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