Book Title: Madhyam vrutti vachuribhyamlankrut Siddhahemshabdanushasan Part 02
Author(s): Rajshekharvijay
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandir

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Page 630
________________ 570 ] प्रीसिद्धहेमशब्दानुशासन [ सूत्राणामकाराधनुक्रमणिका भूयःसंभूयो-च।६।१।३६॥ / मतमदस्य करणे।७।१।१४।। महाराजादिकण।६।३।१०५।। भूलक चेवर्णस्य / 7 / 4 / 41 / / मत्स्यस्य यः / 2 / 4 / 87 / / महेन्द्राद्वा।६।२।१०६॥ भूयदोऽल् / 5 / 3 / 23 // मथलपः। 5 / 2 / 53 // मांसस्थानड्-त्रा / 3 / 2 / 141 / / भूषाक्रोधार्थ-नः / 5 / 2 / 42 // | मद्रभद्राद्वपने / 7 / 2 / 144 // मास्यद्यतनी। 5 / 4 / 39 // भूषादरक्षेपे-त् / 3 / 1 // 4 // मद्राद।६।३। 24 // माणवः कुत्सायाम् / 6 / 195 / / भूषार्थसन्-क्यौ। 3 / 4 / 93 / / / मधुबभ्रोर्बाह्म-के / 6 / 1 / 43 / / मातमातृमातृके वा। 2 / 4 / 85 / / भूस्वपोरदुतौ / 4 / 1 / 70 // मध्य उत्क-रः / 6 / 3 / 77 // मातरपितरं वा / 3 / 2 / 47 / / भृगो नाम्नि / 5 / 3 / 98 // मध्यादिनण्णेया०।६। 3 / 126 मातुर्मातः-लये / 1 // 4 // 40 // भृगोऽसंज्ञायाम् / 5 / 1 / 45 // मध्यान्ताद् गुरौ।३।२।२।। मातुलाचार्यो-द्वा / / 4 / 63 / / भृग्वङ्गिरस्कु-त्रेः / 6 / 1 / 128 / / मध्यान्मः / 6 / 3 / 76 // | मातृपितुः स्वसुः / 2 / 3 / 18 / / भृजो भ / 4 / 4 / 6 / / मध्ये पदे नि-ने / 3 / 1 / 11 // मातृपित्रादेर्डे यणीयणो।६।१९०॥ भृतिप्रत्य-कः / 7 / 3 / 140 // मध्वादिभ्यो रः / 7 / 2 / 26 / / मात्रट / 7 / 1 / 145 // भृतौ कर्मणः / 5 / 1 / 104 // मध्वादेः।६।२।७३ // माथोत्तरपद-ति / 6 / 4:40 // भृवृजित-म्नि / 5 / 1 / 112 // | मनः / 2 / 4 / 14 // मादुवर्णोऽनु / 2 / 1 / 47 // भशामीक्ष्ण्या -देः।७।४। 73 // मनयवलपरे हे। 1 / 3 / 15 / / मानम् / 3 / 4 / 169 // भृशाभीक्ष्ण्ये हि-दि / 5 / 44 // | मनसश्चाज्ञायिनि / 3 / 2 / 15 / / | मानसंव-म्नि।७।४।१९॥ भेषजादिभ्यष्यण् / 7 / 2 / 164 / / मनुर्नभो-ति / 1 / 1 / 24 // / मानात् क्रीतवत् / 6 / 2 / 44 / / भोगवद्गौरिमतो 0 3 / 2 / 65 / / / मनोरौ च वा / 2 / 4 / 61 / / मानादसंशये लुप्॥१११४३ / / भोगोत्तर-नः / 7 // 1 // 40 // मनोर्याणौ पश्चान्तः / 6 / 1194||| माने।५।३ / 81 // भोजसूतयोः-त्योः।२।४।८।। मन्तस्य युवा-योः / 2 / 1 / 10 / / माने कश्च / 7 / 3 / 26 // भौरिक्यैषु-क्तम् / 6 / 2 / 68 // मन्थौदनसक्तु-बा / 3 / 2 / 106|| मारणतोषण-ज्ञश्च / 4 / 2 / 30 / / भ्यादिभ्यो वा।५।३।११५ / / मन्दाल्पाच्च मेधा०७३।१३८ // मालायाःक्षेपं / 2 / 64|| भ्राजभासभाष-नवा / 4 / 2 / 36 / / मन्माजादेर्नाम्नि / 7 / 2067 / / मालेषीके-ते।।४।१०२॥ भ्राज्यलंकृग-अणुः / 5 / 2 / 28|| मन्यस्यानावा-ने / 2 / 2 / 64 // मावर्णान्तो-वः।२।२९४ / / भ्रातुर्व्यः / 6 / 1 / 88 // मन्याण्णिन् / 5 / 1 / 516 // माशब्दइत्यादिभ्यः / 6 / 4 / 44|| भ्रातुः स्तुतौ / 7 / 3 / 179 // मनवनक्कनि-चित् / 51147 // मासनिशा-वा।२।१।१००॥ भ्रातुष्पुत्र-यः / 2 / 3 / 14 // मयूरव्यंसकेत्यादयः / 3 / 1 / 116 / / मासवर्णभ्रात्रनुपूर्वम् / 3 / 11161 / / भ्रातृपुत्राः स्वसृ-भिः / 3 / 1121 // मरुत्पर्वणस्तः / 7 / 2 / 15 / / मासाद्वयसि यः / 6 / 4 / 113 // भ्राष्ट्राग्नेरिन्धे। 3 / 2 / 114 // मादिभ्यो यः / 7 / 2 / 159 / / मिगमीगोऽखलचलि / 4 / 2 / 8 // भ्रासभ्लासभ्रमर्वा / 3 / 4 / 73 // मलादीमसश्च / 7 / 2 / 14 // मिथ्याकृगोऽभ्यासे / 3 / 3 / 93 / / भ्रवोच्च-ट्योः / 2 / 4 / 101 / / मव्यविधिवि-न। 4 / 1 / 109|| मिदः श्ये / 4 / 3 / 5 // [च।६।१।७६ // मव्यस्याः / 4 / 2 / 113 / / मिमीमादामित्स्वरस्य / 4 / 1 // 20 // भ्रश्नोः / 2 / 1 / 53 // मस्जेः सः। 4 / 4 / 110 / / मुचादितृफरफ-शे।४।४।९९।। भ्वादेर्दादेर्घः / 2 / 1 / 83 // महतः-डाः / 3 / 2 / 68 // मुरतोऽनुनासिकस्य ।४।११५१शा . भ्वादे मिनो-ने / 21 // 63 // महत्सर्वादिकण् / 7 / 1 / 42 // मुहद्रहष्णुहष्णिहो वा / 2 / 1184|| मड्डुकझर्झराद्वाण / 6 / 4 / 58 // महाकुलाद्वाबीनौ। 6 / 199 // मूर्तिनिचिताभ्रे घनः 15 // 3 // 37 // मण्यादिभ्यः / 7 / 2 / 44 // ' महाराजप्रो-कण् / 6 / 2 / 110 / / मूलविभुजादयः। 5 / 1 / 144 / /

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