Book Title: Madhyam vrutti vachuribhyamlankrut Siddhahemshabdanushasan Part 02
Author(s): Rajshekharvijay
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandir

Previous | Next

Page 628
________________ 568 ] श्रीसिद्धहेमशब्दानुशासन [सूत्राणामकाराधनुक्रमणिका प्रघणप्रघाणौ गृहांशे / 5 / 335 / / / प्रशस्यस्य श्रः / 7 / 4 / 34 // प्रात्तुम्पतेर्गवि / 4 / 4 / 97 // प्रचये नवा--स्य / 5 / 4 / 43 // प्रश्नाख्याने वेञ् / 5 / 33119 // प्रात्पुराणे नश्च / 7 / 2 / 161 // प्रजाया अस्।७।३।१३७ // प्रश्ना_विचा-रः। 7 / 4 / 102 // प्रात्यवपरि-न्तैः / 3 / 1 / 47 // प्रज्ञादिभ्योऽण / 7 / 2 / 165 / / प्रश्न च प्रतिपदम् / 74 / 98 // प्रात्सूजोरिन् / 5 / 2 / 71 // प्रज्ञापर्णोद-लो। 7 / 2 / 22 // प्रष्टोऽग्रगे।२।३।३२॥ प्रात् नु द्रस्तोः / 5 / 3 / 67 // प्रज्ञाश्रद्धा--र्णः / 7 / 2 / 33 // प्रसमः स्त्यः स्ती।४।१।९५|| प्रादुरुपसर्गा-स्तेः / 2 / 3 / 58 // प्रणाय्यो नि--ते।५।१२३ // प्रसितोत्सु-द्धैः / 2 / 2 / 49 / / प्रादागस्त्त आ–क्ते / 4 / 4 / 7 // प्रतिजनादेरीन / 7 / 1 / 20 / / प्रस्तारसंस्थान-ति / 6 / 479 / / प्रादश्मितुलासूत्रे / 5 / 3 / 51 / / प्रतिज्ञायाम् / 3 / 3 / 65 // प्रस्थपुरवहान्त-त् / 6 / 3 / 43|| प्राद्रहः / 3 / 3 / 103 // प्रतिना पञ्चम्याः / 7 / 2 / 87 / / प्रस्यैषे-ण / 1 / 2 / 14 // प्राद्वाहणस्यैये। 7 / 4 / 21 // प्रतिपन्थादिकश्च / 6 / 4 / 39 // प्रहरणम् / 6 / 4 / 62 // प्राध्वं बन्धे / 3 / 1 / 16 / / .. प्रतिपरोऽनो--वात् / 7 / 3 / 87 // प्रहरणात् / 3 / 1 / 154 // प्राप्तापन्नौ-च।३।१ / 63 / / प्रतिश्रवण-गे।७।४।९४॥ प्रहरणात क्रीडायां० / 62 / 116 / / प्रायोऽतोय-त्रट् / 7 / 2 / 155 / / प्रतेः / 4 / 1 / 98 // प्राकारस्य व्यञ्जने। 3 / 2 / 19 / / प्रायोऽन्नम-म्नि / 7 / 1 / 194 // प्रतेः स्नातस्य सूत्रे / 2 / 3 / 21 // प्राक्काले / 5 / 4 / 47 // प्रायो बहुस्वरादि० / 6 / 31143 / / प्रतेरुरसः सप्तम्याः / 7 / 384 / / प्राक् त्वादगडुलादेः / / 1 / 56 / / | प्रायोऽव्ययस्य / 7 / 4 / 65 / / प्रतेश्च वधे। 4 / 4 / 94 // प्राग् नित्यात्कप् / 7 / 3 / 28 / / | प्राल्लिप्सायाम् / 5 / 3 / 57 / / / प्रत्यनोगुणा-रि / 2 / 2 / 57 // प्रागिनात् / 2 / 1 / 48 // प्रावृष इकः / 6 / 3 / 99 / / प्रत्यन्ववात्सामलोम्नः 7 / 3 / 82 / / प्रागग्रामाणाम् / 7 / 4 / 17 / / प्रावृष एण्यः / 6 / 3 / 92 // प्रत्यभ्यतेः क्षिपः। 3 / 3 / 102 / / प्राग्जितादण् / 6 / 1 / 13 / / प्रियः / 3 / 1 / 157 / / प्रत्ययः-देः / 7 / 4 / 115 / / प्राग्देशे।६।१।१०।। प्रियवशाद्वदः / 5 / 1 / 107 / / प्रत्ययस्य। 7 / 4 / 108 // प्राग्भरते-बः / 6 / 1 / 129 // प्रियसुखं-न्छ / 7 / 4 / 87 // प्रत्यये / 2 / 3 / 6 // प्राग्वत् / 3 / 3 / 74 / / / / / प्रियसुखादा-ल्ये / 7 / 2 / 140 / / प्रत्यये च / 1 / 3 / 2 // प्राग्वतः-स्नञ्।६।१ / 25 // प्रियस्थिर-वृन्दम् / 7 / 4 / 38 // प्रत्याङ: श्रु-नि। 2 / 2 / 56 // प्राचां नगरस्य / / 4 / 26 // प्रसृल्योऽकः साधौ / 5 / 1 / 69 / / प्रथमाद-छः। 1 / 3 / 4 // प्राच्च यमयस.। 5 / 2 / 52 // . प्रेक्षादेरिन् / 6 / 2 / 80 // प्रथमोक्त प्राक।३।१।१४८॥ प्राच्योऽतौल्व०।६।१११४३।। प्रैषानुज्ञावसरे-म्यौ 15 / 4 / 29|| प्रभवति / 6 / 3 / 157 // प्राज्ज्ञश्च / 5 / 1 / 79 / / प्रोक्तात् / 6 / 2 / 129 // प्रभूतादि-ति / 6 / 4 / 43 // | प्राणिजाति-द / 7 / 1 / 66 // प्रोपादारम्भे।३।३। 51 / / प्रभृत्यन्यार्थ-रः / 2 / 2 / 75 // प्राणितूर्याङ्गाणाम् / 3 / 1 / 137 // प्रोपोत्सं-णे।७।४ / 78 // प्रमाणसमासत्त्योः / 5 / 476|| प्राणिन उपमानात् / 7 // 3 / 11 / / प्रोष्ठभद्राज्जाते / 7 / 4 / 13 // प्रमाणान्मात्रट् / 7 / 1 / 140 / / प्राणिनि भूते / 6 / 4 / 112 // / प्लक्षादेरण् / 6 / 2 / 59 // प्रमाणीसंख्याड्डः / 7 / 3 / 128 // प्राणिस्थादस्वा-त् / 7 / 2 / 60 // प्लुताद्वा / 1 / 3 / 29 // प्रयोक्तृव्यापारे णिग / 3 / 4 / 20 // प्राण्यङ्गरथखल-द्यः अश३७॥ प्लुतोऽनितौ / 1 / 2 / 32 // प्रयोजनम् / 6 / 4 / 117 // प्राण्यङ्गादातो लः।७।२।२०।। प्लुप् चादा-देः। 7 / 4 / 81 / / प्रलम्भे गृधिवञ्चेः 13 / 3189 // प्राण्योधिवृ-च / 6 / 2 / 31 / / प्वादेह्रस्वः / 4 / 2 / 105 // प्रवचनीयादयः / 5 / 1 / 8 // | प्रात्तश्च मो वा / 4 / 1 / 96 / / / फलबहाच्चेनः / 7 / 2 / 13 / /

Loading...

Page Navigation
1 ... 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646