Book Title: Madhyam vrutti vachuribhyamlankrut Siddhahemshabdanushasan Part 02
Author(s): Rajshekharvijay
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandir

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Page 617
________________ सूत्रांणामकाराधनुक्रमणिका ] मध्यमवृत्त्यवचूरिसंवलितम् / [557 - क्रोष्दृशलकोलक् च / 6 / 1156 // / क्षेपे च यच्चयत्रे / 5 / 4 / 18 // / गम्भीर-वात् / 6 / 3 / 135 / / क्रौडयादीनाम् / 2 / 4 / 79 // | | क्षेपेऽपिजात्वो-ना। 5 / 412 // गम्ययपः कमांधारे / 2 / 274 // क्रयादेः / 3 / 4 / 79 // क्षेमप्रिय-खाण / 5 / 1105 // गम्यस्याप्ये / 2 / 2 / 62 // क्लिन्नाल्ल-स्य / 7 / 1 / 130 // क्षैशुषिपचो-वम् / 4 / 2 / 78 // गर्गभार्गविका / 6 / 1 / 136 / / क्लीबमन्ये-या। 3 / 1 / 128 / / खनो डडरेकेकव०।५।३।१३७॥ गर्गादेर्यम् / 6 / 1 / 42 // क्लीवे / 2 / 4 / 97 / / खलादिभ्यो लिन् / 6 / 2 / 27|| गर्वोत्तरपदादीयः / 6 / 31 57 / / क्लोबे क्तः। 5 / 3 / 123 // खारीकाक-कच / 6 / 4 / 149 / / गर्भादप्राणिनि / 7 / 1 / 139 / / क्लीबे वा / 2 / 1 / 93 // खार्या वा / 7 / 3 / 102 // गवाश्वादिः। 3 / 1 / 144 // क्लेशादिभ्योऽपात् / 5 / 1181 // खितिखीती- / 1 / 4 / 36 // गवि युक्त / 3 / 2 / 74 // ककुत्रात्रेह / 7 / 2 / 93 // खित्यनव्यया-श्च / 3 / 2 / 11 / / / गवियुधेः स्थिरस्य / 2 / 3 / 25 / / कचित् / 5 / 1 / 171 // खेयमृषोद्ये / 5 / 1 / 38 // गस्थकः / 5 / 1 / 66 // कचित् / 6 / 2 / 145 // ख्णम् चाभीक्ष्ण्ये / 5 / 4 / 48 // | गहादिभ्यः / 6 / 3 / 63 // क्वचित्तुर्यात् / 7 / 3 / 44 // ख्यागि / 1 / 3 // 54 // . गहोजेः।४।१।४०॥ क्वचित् स्वार्थे / 7 / 3 / 7 // ख्याते दृश्ये।५।२।८॥ गाः परोक्षायाम् / 4 / 4 / 26 / / कसुष्मतौ च / 2 / 1 / 105 // गच्छति पथिते / 6 / 3 / 203 // गात्रपुरुषात् स्नः / 5 / 4 / 59|| कि / 5 / 1 / 148 // गडदबादे-ये / 2 / 1 / 77 // गाथिविद-नः / 7 / 4 / 54 / / किवृत्तेरसुधियस्तौ / 2 / 1158 // गड्वादिभ्यः / 3 / 1 / 56 // / गान्धारिसाल्वेया०।६।१११५|| क्वेहामात्रतसस्त्यच् / 6 / 3 / 16 / / गणिकाया ण्यः / 6 / 2 / 17 // / गापापचो भावे / 5 / 3 / 95 / / कौ / 4 / 4 / 120 // गतिः / 1 / 1 / 36 // गापास्थासादा-कः / 4 / 3 / 96 / / क्षत्रादियः / 6 / 1 / 93 // गतिकारक-क्वौ / 3 / 2 / 85 // गायोऽनुपसगाट्टक् / 5 / 174 // क्षय्यजय्यौ शक्तौ।४।३। 90 // गतिक्वन्य-षः।३।१।४२॥ गिरिनदी-द्वा / 7 / 3 / 90 // क्षिपरटः / 5 / 2 / 66 / / गतिबोधा-दाम् / 2 / 2 / 5 // गिरिनद्यादीनाम् / 2 / 3 / 68 // क्षिप्राशंसार्थ-म्यौ / 5 / 4 / 3 // गते गम्येऽध्व-वा / 2 / 2 / 107 / / गिरेरीयोऽस्त्राजीवे / 6 / 3 / 219 / / क्षियाशी प्रेषे।७।४।९२॥ गते वाऽनाप्त / 2 / 2 / 63 // गुणाङ्गाद् वेष्ठेयसू / 7 / 3 / 9 // क्षीरादेयण / 6 / 2 / 142 // गतौ सेधः / 2 / 3 / 61 // गुणाद-नवा / 2 / 2 / 77 // क्षुत्तृड्गर्धेऽशाना-यम् / 4 / 3 / 113 // गत्यर्थवदोऽच्छः / 3 / 1 // 8 // गुणादिभ्यो यः / 7 / 2 / 53 // क्षुद्रकमालवा-म्नि / 6 / 2 / 11 / / गत्यर्थाकर्मक-जेः / 5 / 1 / 11 / / गुणोऽरेदोत् / 3 / 3 / 2 // क्षुद्राभ्य एरण वा / 6 / 18 // गत्यर्थात् कुटिले / 3 / 4 / 11 / / पौधूपवि-यः।३।४।१॥ क्षुधक्लिशकुष-सः / 4 / 3 / 31 // गत्वरः / 5 / 2 / 78 // गुपतिजो-सन् / 3 / 4 / 5 // क्षुधवसस्तेषाम् / 4 / 4 / 43 // गन्धनावक्षे-गे। 3 / 2 / 76 // गुरावेकश्च / 2 / 2 / 124 // क्षुब्धविरिब्ध-भौ / 4 / 4 / 0 // गमहनजन-लुक् / 4 / 2 / 44 // गुरुनाम्यादे-र्णोः / 3 / 4 / 48 // क्षुभ्नादीनाम् / 2 / 3 / 96 // गमहनविदल-वा।४।४। 83 / / गृष्टयादेः / 6 / 1 / 84 // क्षुश्रोः / 5 / 3 / 71 // गमां कौ / 4 / 2 / 58 // गृहेऽग्नीधो रणधश्च / 6 / 3 / 174 // क्षेः क्षीः / 4 / 3 / 89 // गमिषद्यमश्छः / 4 / 2 / 106 / / गृहोऽपरोक्षायां दीर्घः।४|४|३४|| क्षेः क्षी चाध्यार्थे / 4 / 2 / 74 // गमेः क्षान्तौ।३।३। 55 // गलुपसद-हर्ये / 3 / 4 / 12 / / क्षेत्रेऽन्य-यः / 7 / 1 / 172 // गमोऽनात्मने।४।४।५१॥ गेहे ग्रहः। 5 / 1 / 55 // क्षेपातिग्र-याः / 7 / 2 / 85 // / गमो वा / 4 / 3 / 37 / / | गोः / 7 / 2 / 50 //

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