Book Title: Madhyam vrutti vachuribhyamlankrut Siddhahemshabdanushasan Part 02
Author(s): Rajshekharvijay
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandir
________________ सूत्राणामकाराद्यनुक्रमणिका ] मध्यमवृत्त्यवचूरिसंवलितम् / ताभ्यां वा-न / 2 / 4 / 15 / / / तृतीस्य तृतीयचतुर्थे / 1 / 3 / 49 // | त्यादौ क्षेपे / 3 / 2 / 126 // तारकावर्णका-त्ये / 2 / 4 / 11 // तृतीयस्य पञ्चमे / 1 / 3 / 1 // / त्रने वा। 4 / 4 / 3 // तालाद्धनुषि / 6 / 2 / 32 // तृतीया तत्कृतैः / 3 / 1 / 65 // त्रन्त्यस्वरादेः / 7 / 4 / 43 / / तिककितवादी द्वन्द्वे / 6 / / 131 / / / तृतीयान्तात्-गे / 1 / 4 / 13 // पुजतोः षोऽन्तश्च / 6 / 2 / 33 / / तिकादेरायनित्र / 6 / 1 / 107 // तृतीयायाम् / 3 / 1 / 84 // त्रप् च / 7 / 2 / 92 // तिक्कृती नाम्नि / 5 / 1 / 71 / / तृतीयाल्पीयसः / 2 / 2 / 112 // त्रसिगृधि-नुः / 5 / 3 / 32 / / ति चोपान्त्या दुः / 4 / 1154|| तृतीयोक्तं वा।३।१।५०॥ त्रिककुद् गिरौ / 7 / 3 / 168 // तित्तिरिवर--यण / 6 / 3 // 184 / / तृन्नुदन्ता-स्य / 2 / 2 / 90 // त्रिचतुरस्-दौ / 2 / 1 / 1 // तिरसस्तियति / 3 / 2 / 124 // / तृन् शीलधर्मसाधुषु / 5 / 2 / 27 // त्रिंशद्विशते-र्थ / 6 / 4 / 129 / / तिरसो वा / 2 / 3 / 2 // तृप्तार्थपूरणा-शा / 3 / 1 / 85 // | त्रीणि त्रीण्यन्य-दि / 3 / 3 // 17 // तिरोऽन्तौ / 3 / 1 // 9 // . तृषिधृषिस्वपो नजिङ् / 5 / 2 / 80 // त्रेस्तु च।७।१।१६६॥ तिर्यचापवर्गे। 5 / 4 / 85 // तृम्वसृ-।१।४।३८ // खयः।१।४। 34 // तिर्वा ष्ठिवः / 4 / 1 / 43 / / तृहः इनादीत् / 4 / 3 / 62 // त्रैशचात्वारिंशम् / 6 / 4 / 174 // तिलयवादनाम्नि / 6 / 2 / 52 / / तत्रपफलभजाम् / 4 / 1 / 25 // / स्वते गुणः / 3 / 2 / 59 / / तिवां णवः परस्मै।४।२११७|| ते कृत्याः / 5 / 1 / 47 // स्वमहं-कः / 2 / 1 / 12 // तिलादिभ्यः-लः / 7 / 1 / 136 / / तेन च्छन्ने रथे।६।२।१३१ / / त्वमौ प्र-न् / 2 / 1 / 11 / / तिष्ठतेः / 4 / 2 / 39 // तेन जित-त्सु।६।४।२॥ | त्वे / 2 / 4 / 100 // तिष्ठदग्वि-यः।३।१३६॥ | तेन निवृत्ते च / 6 / 2 / 71 // / त्वे वा।६।१। 26 // तिष्यपुष्ययोर्भाणि / 2 / 4 / 9 / / तेन प्रोक्त।६।३। 181 / / तीयं हित-वा / 1 / 4 / 14 / / तेन वित्ते-णौ। 7 / 1 / 175 // थे वा।४।१।२९ // तीयशम्ब-डाच / 7 / 2 // 135 / / तेन हस्ताद्यः / 6 / 4 / 101 / / थोन्थ / 1 / 4 / 78 // तीयाट्टीकम-चेत / 7 / 2 / 153 / / / तेहादिभ्यः। 4 / 4 / 33 // तुः / 4 / 4 / 54 // ते लुग्वा / 3 / 2 / 108 / / दंशसब्जः शवि।४।२।४९ // तुदादेःशः / 3 / 4 / 81 // तेषु देये।६।४। 97 // दंशेस्तृतीयया / 5 / 4 / 73 // तुभ्यं मह्यं डसा / 2 / 1 / 14 // | तो वा / 7 / 2 ! 148 // दशेनः / 5 / 2 / 90 // तुमर्हादिच्छायां-नः / 3 / 4 / 21 // | तो माझ्याक्रोशेषु / 5 / 2 / 21 / / / दक्षिणाकडङ्गर-यौ / 6 / 4 / 181 / / तुमश्च मनःकामे / 3 / 2 / 140 // तो मुमो-स्वो। 1 / 3 / 14 // दक्षिणापश्चा-त्यण / 6 / 3 / 13 / / तुमोऽर्थे भा-त्। 2 / 2 / 61 // तौ सनस्तिकि / 4 / 2 / 64 // दक्षिणेर्मा व्याधयोगे / 73 / 143 // तुरायणपा-ने।६।४। 92 // त्यजयजप्रवचः। 4 / 1 / 118 // दक्षिणोत्तराच्चातस् / / 2 / 117 / / तुल्यस्थाना-स्वः / 1 / 1 / 17 / / त्यदादिः / 3 / 1 / 120 / / दगुकोशल-दिः / 6 / 1 / 108|| तुल्यार्थस्तृतीयाष०।२।२।११६।। त्यदादिः / 6 / 1 / 7 // दण्डादेयः / 6 / 4 / 178 / / तूदीवर्मत्या एयण / 6 / 3 / 218 // त्यदादेमयट / 6 / 3 / 159 // दण्डिहस्ति-ने / 7 / 4 / 45 / / तूष्णीकः / 6 / 4 / 61 // त्यदाद्यन्यसमा-च / 5 / 1 / 152 // दत् / 4 / 4 / 10 // तूष्णीकाम् / 7 / 3 / 32 // त्यदामेन-ते / 2 / 1 / 33 // दध्न इकण / 6 / 2 / 143 / / तूष्णीमा। 5 / 4 / 87 // त्यादिसर्वादेः-ऽक् / 7 / 3 / 29 / / दध्यस्थि -न् / 1 / 4 / 63 / / तृणादेः सल् / 6 / 2 / 81 // त्यादेः सा-न / 7 / 4 / 91 // दध्युरःस-लेः / 7 / 3 / 172 / / तृणे जातौ / 3 / 2 / 132 // / त्यादेश्च प्र-पप् / 7 / 3 / 10 / / | दन्तपादना-बा।२।१।१०१॥
Page Navigation
1 ... 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646