Book Title: Madhyam vrutti vachuribhyamlankrut Siddhahemshabdanushasan Part 02
Author(s): Rajshekharvijay
Publisher: Shrutgyan Amidhara Gyanmandir

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Page 616
________________ 556] श्रीसिद्धहेमशब्दानुशासनं (सूत्राणामकाराद्यनुक्रमणिका कुमारीक्रीड-सोः / 7 / 3 / 16 // / कृत्येऽवश्यमो लुक् / 3 / 2 / 138 // / तादल्पे / 2 / 4 / 45 // कुमुदादेरिकः / 6 / 2 / 96 // कृत्यस्य वा।२।२।८८॥ तादेशोऽपि / 2 / 1 / 61 // कुरुच्छरः / 2 / 1 / 66 // कृत्संगति-पि / 7 / 4 / 117 // क्तेटो गुरोर्व्यञ्जनात् / 5 / 3 / 106|| कुरुयुगंधराद्वा / 6 / 3 / 53 // कोनावश्यके / 3 / 1 / 95 // क्तेन / 3 / 1 / 92 // कुरोर्वा / 6 / 1 / 122 // कृपः श्वस्तन्याम् / 3 / 3 / 46 // क्तेनासत्त्वे / 3 / 1 / 74 // कुर्बादेयः / 6 / 1 / 100 // कृपाहृदयादालुः / 7 / 2 / 42 // क्तेऽनिटश्वजो:-ति / 4 / 1 / 111 // . कुलकुक्षि-रे / 6 / 3 / 12 // कृभ्वस्तिभ्यां-च्चिः 7 / 2 / 126 / / क्त्वा / 4 / 3 / 29 // कुलटाया वा / 6 / 1 / 78 // कृवृषिमृजि-वा / 5 / 1 / 42 // क्त्वातुमम् / 1 / 1 // 35 // कुलत्थकोपान्त्यादण / 6 / 4 // 4 // कृशाश्वक-दिन / 6 / 3 / 190 / / क्त्वातुमम्-वे / 5 / 1 / 13 / / कुलाख्यानाम्। 2 / 4 / 79 / / कृशाश्वादेरीयण / 6 / 2 / 93 / / क्नः पलितासितात् / / 4 / 37|| कुलान्जल्प।७।११८६॥ कृष्यादिभ्यो वलच् / 12 / 27 // क्यः शिनि / 3 / 4170 // कुलादीनः / 3 / 1 / 96 // कृतः कीर्तिः / 4 / 4 / 123 // क्यङ् / 3 / 4 / 26 // कुलालादेरकञ्। 6 / 3 / 194 / / केकयमित्रयु-च / 7 / 4 / 2 // ब्यङमानिपित-ते / 32 / 50|| कुलिजाद्वा लुप च / 6 / 4 / 165 / / केदाराण्ण्यश्च / 6 / 2 / 13 // क्यसो नगा।३।३।४३ // कुल्मासादण् / 4 / 1 / 195 // केवलमामक-जात् / 2 / 4 / 29 / / क्यनि।४।३।११२ // .. कुशलायु-याम् / 2 / 3 / 97 केवलस-रौः / 1 / 4 / 26 // क्ययङाशीयें। 4 / 3 / 10 // कुशले।६।३।९५॥ केशाद्वः / 7 / 2 / 43 // क्यो वा / 4 / 3 / 81 // कुशाग्रादीयः।७।१।११६ / / केशाद्वा।६।२।२८॥ क्रमः / 4 / 4 / 54 // कुषिरजेाप्ये-च / 3 / 4 74 // केशे वा।३।२।१०२।। क्रमः क्त्वि वा / 4 / 1 / 106 / / कुसीदादिकट / 6 / 4 / 35 // - कोः कत् तत्पुरुषे / 3 / 2 / 130 // क्रमो दीर्घः परस्मै / 4 / 2 / 109 / / कूलादुद्र जोद्वहः / 5 / 11122 // कोटरमिश्रक-णे।३।२।७६॥ क्रमोऽनुपसर्गात् / 3 / 3 / 47 // कूलाभ्रकरी-षः / 5 / 1 / 110 // | कोऽण्वादेः / 7 / 2 / 76 // क्रय्यः क्रयार्थ / 4 / 3 / 9 / / कृगः खनट-णे।५।१।१२९।। कोपान्त्याच्चाण / 6 / 3 / 56 / / क्रव्यात् क्रव्या-दौ ।५।१।१५शा कृगः प्रतियले। 2 / 2 / 12 // कोऽश्मादेः / 6 / 4 / 97 // क्रियातिपत्तिः-महि / 3 / 3 / 16 / / कृगः श च वा / 5 / 3 // 10 // कौण्डिन्याग-च।६।१।१२७|| क्रियामध्येऽध्व-च / 2 / 2 / 110 // कृगः सुपुण्य-त् / 5 / 1 / 162 / / कौपिजलहास्तिप०।६।३।१७१।। क्रियायो क्रियाथो० / 5 / 3 / 13 / / कृगो नवा।३।१।१०॥ कौरव्यमाण्डूकासुरेः / 2 / 4/70|| क्रियार्थो धातुः / 3 / 3 / 3 // कृगो यि च / 4 / 2 / 88 // कौशेयम् / 6 / 2 / 39 // क्रियाविशेषणात् / 2 / 2 / 4 / / कृगोऽव्ययेना-मौ। 5 / 4 84 / / विकति यि शय / 4 / 3 / 105 // क्रियाव्यतिहा-र्थे / 3 / 3 / 23 / / कृग्ग्रहो-यात् / 5 / 4 / 61 // क्तं नबादिभिन्नैः।३।१।१०५।। क्रियाश्रयस्या-णम् / 2 / 2 / 30 / / कृगतनादेरुः / 3 / 4 / 83 // तक्तवतू / 5 / 1 / 174 // क्रियाहेतुः कारकम् / 2 / 2 / 1 / / कृतचूतनृत-वा / 4 / 4 / 50 // क्तयोः / 4 / 4 / 40 // क्रीडोऽकूजने / 3 / 3 / 33 // कृताद्यैः / 2 / 2 / 47 // क्तयोरनुपसर्गस्य / 4 / 1192 // | क्रीतात् करणादेः / / 4 / 44|| कृतास्मरणा-क्षा / 5 / 2 / 11 // तयोरसदाधारे। 2 / 2 / 91 // क्रुत्संपदादिभ्यःक्किप् / 5 / 3 / 114 // कृते।३।१।७७ // ताः। 3 / 1 / 151 // क्रुगृहे-पः / 2 / 2 / 27|| कृते / 6 / 3 / 192 // ताच नाम्नि वा / / 4 / 28|| क्रुशस्तुनः-सि / / 4 / 91 // कृत्यतुल्या-त्या / 3 / 1114|| तात्तमबादे-न्ते / 7 / 3 / 56 / / / क्रोशयोजन-माहे / 6 / 4 / 86 / /

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