________________
॥ अवगाहपरिणाम-धर्मादिविशेषविचारः ॥ चन्नेनुं (अवगाहस्वभाव अने परिणामवैचित्र्य ) दृष्टांत-उदाहरण आ प्रमाणे छबळता एवा एक दीपकना प्रकाशवडे जेम ओरडो पूराय छे,नेम सेंकडो दीपकना प्रकान पण तेटलाज ओरदायां समाइ रहे है, ।। ४६ ।। अथवा (बीर्जु दृष्टांत एले के ) एककर्ष (नोलो-रूपीआभार,पारामा औषधिना सामर्थ्यधी १०० कर्ष तोला सोनुं (सुवर्ण) प्रवेश करी जाय छे (अर्थात् समाय छ) छतां पण ते पारो तोलने विमे १ कर्षज कायम रहे छे. (अर्थात् वोल जरापण पधतो नपी.) 11 ४७ ॥ वळी औषधिन। सामर्थ्यथी ज १०० तोला सुवर्ण अने एक तोलो पारो बन्ने जुदा पण थइ जाय छे. 1४८भावार्थ श्री भगवतीजीना १३ मा शतकना ४ था दशानी वृत्तिपा कयो के. (इये चालु विषय कहे छे.)
॥ धर्मास्तिकायादिकनुं विशेष स्वरूप ॥ किञ्च॥ धर्मास्तिकायस्तद्देश-स्तत्प्रदेश इति त्रयम् । एवं त्रयं प्रर्य ज्ञेय-मधर्माभ्रास्तिकाययोः॥४९॥तत्रास्तिकायः सकल-स्त्रप्रदेशास्मको भवेत् । कियन्मात्रांशरूपाश्च, तस्य देशाःप्रकीर्तिताः॥५०॥ स्कन्दन्ति शुष्यन्ति पुरसविचटनेन, धीयन्ते च पुष्यन्ते पुद्गलचटनेनेति स्कन्धाः । 'पृषोदरादयः' इतिरूपनिष्पत्तिः, इति प्रज्ञापनावृत्तौ व्युत्पादितत्वादेते स्कन्धव्यपदेश नाहन्ति । अत एव सू. त्रे प्रायः 'धम्मस्थिकाए, धम्मस्थिकायस्त देसे' (धर्मास्तिकायः,
१ पारान अमुक अमुक औषधिवडे घणा पुट आपतां पारामां बुभुक्षित अवस्था उम्पन्न थवाथी ५ सुषर्णादि खाई जाय छे. अनं (रेचक) औपधिना प्रभाष पुनः सुषर्णादि जूहूँ पण पडी जाय ते सभषित छ, सांभळया प्रमाणे घोडा वखत उपर पक वृद्ध अनुभवी चैचना पहीलो पाराने खुभुक्षित अवस्था आपीने लगभग सात तोला जेटलं सोनु मभाषता हता. श्री स्थानांग सूत्र वृत्तिमा “अचिन्स्यत्वात् द्रव्यपरिणामस्य यथा पारवस्यकेन कणचारिताः सु वर्णस्य से सप्ताप्येकीभवन्ति, पुनर्वामिताः प्रयोगतः सप्तष त इति " ए पाठ मां सात तोला सोनु ग्रहण कयु छे. जे उपरोश वैध वृतांतधी पण सिस थाय ,, अने कोइ विशिष्ट औषध प्रयोग होय तो. सो तोला सोनानो पण प्रवेश निर्गम करयामा विरोध नथी, पज आर्यावर्तना आयशाननी विशालना अने गंभीरता छ के जेने हजु सुधी दालना कलमान नमानाना साइम्सना प्रोफेसरो पण पहोंची शक्या नयी. आर्यविज्ञान त्रिकालाबाधित छ,