Book Title: Lokprakash
Author(s): Vinayvijay, 
Publisher: Sanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 544
________________ ॥ श्रीलोकनकाशे तृतीयः सर्गः (सा० २३१) प्रकृतयः अवशिशः भवक्षयेण उपशमश्रेण्यन्तर्गतगुणस्थानेषु कालं कृत्वा अनुवर विमाने त्पधते, गच्छति मयम गुणस्थानं द्वितीयं वा गत्वा चतुथ वा गच्छति। पतन आपष्टं-आअद्धाक्षयेण पति उपशान्ताः प्रकृतयः . ० - m. . . . . : जफ 卐5फ 5 | उपशान्तमोहः १ संज्वलनलोभं उपशमयति २८ २ अप्रत्याख्यानावरण प्रत्याख्यानावरणलोभौ उपशमयति २७ १ संचलनमायां उपशमयति २० २ अप्रत्याख्यानावरण प्रत्याख्यानावरणमाये उपशमयति २४ १ संज्वलनमान उपशमयति २२ २ अप्रत्याख्यानावरण प्रत्याख्यानावरणमानौ उपशमयति २१ २ संज्वलनकोयं उपशमयति १० २ अपत्याख्यानावरण प्रत्याख्यानावरणक्रोधी उपशमयति १८ १ पुरुषवेदं उपशमयति १० । हास्य १० रति ११ अरति १२ भय १३ शोक १४ जुगुप्सा १५ रूपं पटकं उपशमयति १५ . स्त्रीवेद उप० ० | . नपुंसकवेद उप० ८ १ सम्यक्त्वमोहनीयं उपशमन मिश्रमोहनीय उपशमयति ६ . १ मिथ्यावमोहनीयं उपशमयति ५ २४ अनन्तानुबन्धिनः क्रोध ५-मान २-माया -लोभान् -उपशमयति ४ | ॥ उपशमश्रेण्यारोहकमोऽयं ॥ मोहनीयपकृतय अष्टाविंशतिः ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629