Book Title: Lokprakash
Author(s): Vinayvijay, 
Publisher: Sanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad

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Page 607
________________ (७०) ॥ गुणस्थानद्वारे गुणस्थानेषु जीवमेदसङ्ख्यायन्त्रविचारः॥ (हार उकाय,वायुकाय अने ५साधारण वनस्पतिकाय ए पांचने सूक्ष्मपर्याप्ला अने सूक्ष्म अपर्याप्ता तथा चादरपर्याप्ता अमे यावर अपर्याप्त प चार भेदे गुणतां २० तथा प्रत्येक वनस्पतिकाय यावरज होषाथो तेना पर्याप्त भने भपर्याप्त प के भव मेळवता वाधीश भेद पकेन्द्रियना थाय. (६ विकलेन्द्रिय ) जीन्द्रिय, चीन्द्रिय, धनुरिन्द्रिय, ए प्रणने पर्याप्ता अमे अपर्याप्ता पम ये मेरे गुणतां छ भेद थाय. [ १४ नारकजीयो ] खात नारकीला पर्याप्त अने अपर्याप्त पम ये भेदे गुणतां ५४ याय. ( २० तिर्यश्च पञ्चेन्द्रियभेदी ) जलचर वेघर ए बे भेद तथा स्थलचरना पड़पगा १, उरःपरिमप २ अने भुजपरिसर्प ३, पत्रण भेळवता पांचभेद थया, ते पांचने १ समूछिम पर्याप्त तथा २ समूछिम अप प्तिा अने ३ गर्भज पर्याप्ता तथा ४ गर्भज अपर्याप्त पचार भेदे गुणतां वीश मेद तिर्यञ्च पञ्चन्द्रियना थाय. [ ३०३ मनुष्यभेदो ] पांच भरत पांच पेषत भने पांच महाधिदेव प पंवर कर्मभूमि (१ नम्बम्होपमां,२ धातकोखण्डमां आने २ पुष्करार्धमा परीते पांच भरत, तेज प्रमाणे पांच परवत तथा पांघ महाधिदेह पण नाणवा अने तेषीज रीते अकर्मममि क्षेत्रोंनी पण पांच पांच संख्या प्राणधी. ) पांच विमपन्त, पांच हिरण्यवन्त, पांच हरिषर्ष, पांच रम्यक, पांच देशकश भने पांव उत्तरकुरु प श्रीश अकर्मभूमि, अने . अन्तरदीप [ भरतक्षेत्रनो उत्तर तरफना क्षुल्लाहमषन्त पर्वतमी लषणसमुद्रमा गयेली पूर्वदिशामा थे याशुना मृणामां बे अने पश्चिम दिशाना बे बाजुना खुणामां थे पम धार दादाओ तथा ऐरबतक्षेत्रनी दक्षिण तरफना शिवरिपर्वतभी तेज प्रमाणे लवणसमुद्रमा ग्येली चार दादाओ मळी आठ दादाओं उपर प्रत्येके सात सात अन्तहींप दोषाथी ५६ अन्तरसपा थाय ] ते १०१ भूमिमां उत्पन्न पता मनुप्यो जुदा जुदा स्वभाववाळा होषाधी क्षेत्रोदची भिन्न कवाय, तेमा समू छिममनुष्यो अपर्याप्लज होय ने जेयी ते १०१ तथा १०१ भूमिमा उत्पन्न यता गर्भज मनुन्यो पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता एम घे भेद होषापो २१२ भेवी याय कुल संमृछिम १०१ तथा गर्भ जना २०२ भेगा करता ३३ मनुष्यभेदो थाय. ( १९८ देषभेदो ) १. भुवनपति, १५ परमाधामी, ८ व्यन्तरो. ८ पाणव्यस्तरो, १० तिर्यग्जंभको, ५ चरज्योतिको, ५ स्थिरख्योतिको, ३ किस्विपिक, १२ सौध. मकरूपादि, . लोकान्तिक, ९ प्रयेयक, अने ५ अनुसर, म कुल ९९ भदने पर्याप्त तथा अपर्याप्त पम बे भेदे गुणतां १९८ भदो थाय, सर्वमली ५,६३ भेदो जीधना माणषा. २२. | एफेन्द्रिय १५ | नारको ५६३ । ६ | विकले न्द्रिय जीवमेद पन्त्रक | पञ्चेन्द्रिय नियंत्र | १९८ | देवता

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