Book Title: Lokprakash
Author(s): Vinayvijay, 
Publisher: Sanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad

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Page 606
________________ (५६२) ३०मुं) ॥ श्रीलोकप्रकाशे तृतीयः सर्गः ॥ सा० २३८) चतुर्दशसु गुणस्थानेषु त्रिषेप्रयुत्तरपञ्चशत २६३ जीवभेदसंख्यायन्त्रकम् । जीवभेद गुणस्थान नाम. संख्या विशेष विचार. मिथ्यात्व गुणस्थाने कर्मग्रन्थ सास्वादन काग्मते सम्यग्दृष्टि ४०० गुणस्थाने सिद्धान्तमते ३९७ मिश्रष्टष्टि गुणस्थाने अविरतस म्यग्दष्टि गुणस्थाने ५३५ देशविरत गुणस्थाने छन्दा प्रमत्त संय यत गुणस्थान की चौदमा अयोगिकेवलि गुणस्थान सुधी गुणस्थानोमां १९८ ४२३ ગ્ १५ पांचसो पसल जीवभेदमांची पांच अनुत्तरदेषो अने नवलोकास्तिक प चाँद पर्याप्त तथा अपर्याप्त अठावोश भेदी बाद करतां वाकीना ५३५ जीवभेदो संभवी शके थे. ३ चादर अपर्याप्त पृथ्वीका य १, अकाय रे, प्रत्येकष नस्पतिकाय ३ पकेन्द्रिय ३ अपर्याप्त विकलेन्द्रिय पर्यासंमृद्धिमतिर्यञ्चपंचे. १० गर्भज पर्याप्त तथा अप तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय २०२ गर्भज्ञपर्याप्त ११ तथा अर्थात १०१ मनुष्य. १७- देवताना १९८ भेदमांथी पांच अनुसर अने नव लोकान्तिक प चौदना पर्याप्त अपर्याप्त मळी २८ शिवाय १७० ७ पर्याप्त नारकी (सिद्धान्तका रमते ३ पके० शिवाय ३९७ ) ५. गर्भज पर्यान तियंचो. १०१ गर्भज पर्याम मनुष्य ८५ पर्याप्त देवताओना ९९ भेटमाथी ५ अनुत्तर भने १ लोकान्तिका पर्यात चौव भेद बाद करता ८५ ७ पर्याप्त नारकोओ १० गर्भज पर्याप्त तथा अपर्याप्त तिचा. २०२ गर्भ पर्याप्त तथा अपर्याप्त मनुष्यो १९८ पर्याम तथा अपर्यात बारे निकायना देवी १३ पहेली छ मारकना पर्याप्ता तथा अपर्याप्त ए १२ तथा पर्याप्त सातमी नारकीना नारकी १ (मातमी नारकीमा अपर्याप्त जीवोमां न होय), ५. गर्भज पयर्याप्त तिर्यचो. १५. गर्भज पर्याप्त पांचभरत पांच पेरवत पांचमहा विदेह ए पंदर कर्मभूमिना मनुष्यों १५ गर्भज पर्याप्त पांच भरत. पांच पेरवत, पांच महा विदेश य पंदर कर्मभूमिता मनुष्यो १५६३ जोषभेदसंख्या-- ( २२ एकेन्द्रियभेदी) १ पृथ्वीकाय, २अपकाय, ३ से

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