Book Title: Lokprakash
Author(s): Vinayvijay, 
Publisher: Sanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad

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Page 620
________________ %D ३१) ॥श्रीलोकप्रकाशे तृतीयः सर्गः (सा० २४१)। (५४) तीत्य(अपेक्षा) सत्य-७व्यवहारसत्य-८भावसस्य-रयोगसस्य अने १०९ उपमासस्य ॥शाते ते देशने विभे [तेचा प्रकारना] पदार्थने ओळखावना जे वचन ते जनपदसत्य (१) कहेवाय, जेमके कुंकणादि देशमा पाणीने पिच कहेवामां आवे छ ।।६०॥ जे सर्वलोकने सम्मत (प्रमाण) थपेलं वचन के ते सम्मतसत्य (२) छे, जेम पंक कादवां जन्मवारूप पंकज पणु (घास देडका वगैरे) बोजा पदार्थोंमां छतां पण कमळनेज पंकज कहे, ॥६१।। ते वस्तुनी ओळखाण करनार जे फै। स्थापेलं होय ते स्थापनासत्य(३) कडेवाय. जेम एकडो आगळ वे बिंदुओ सहित होय तो ते सो कोवाय. [१२॥ अथवा आ अरिहंतादिक छे एवा विकल्पपूर्वक जे लेप्यादिक फर्म ( चित्रामण वगेरे वस्तु ) स्थपाय तेने पण बुद्धिमानोए स्थापना. सत्य कहेलं छै ।।६३॥ जेनुं जे नाम निर्णिन कयं तेनुं ते नाम नामसत्य [४) कहेवाय. जेमके कुछने नहि वधारता पुत्रने पण कुळवर्धन नामयी बोलावो.॥६॥ ते ते वेषादिक- ग्रहण करवायी आह रूपसत्य(५) कवाय, प्रेम धारण करेला युनिवेषवाळो दांभिक होय तोपण मुनि कहेवाय. ॥ ६५ ॥ बीजी वस्तुओने आअयिने जे लंबाइ वा म्होलाइ एकन वस्तुमा कहेवाय ते जिनेश्वरोए प्रतीत्यसत्प (६)कहेल छे ॥६६। जेम कनिश आंगळीनी अपेक्षाए अनामिका (कनिष्टा पासेनी) आंगळी दोघं कहेचाय, अने तेज [ अनामिका ] आंगळी मध्यमा आंगलीनी अपेक्षाए ह्रस्व ( टुंकी) कवाय ।। ६७ ॥ अथवा जेम तेना पितानी अपेलाए चैत्रने पुत्रपणु के, अने वेना (चैत्रना) पुत्रनी अपेक्षाए तेनेज पितापणुं पण छे. ॥६॥ लोकनो विवक्षावडे जे बोलाय छे ते व्यवहारसत्य (७), जेम वासण गळे छे, पर्वत पळे छ, कन्या पेट विनानी के इत्पादि. ॥६९॥ कारणके पर्वत अने पर्वतपर रहेला तण वगेरेनो तेमम वासण अने पाणीनो अभेद विवक्षीनेज ( वनेने एकरूप गणीने) लोको तेचा प्रकारे बोले छ ( माटे ते व्यवहार सत्य छे ). ॥७०॥ संभोग वीज बोय)धी थवावाळा (मोत्पत्तिवाळा) पेटना अभाचे कन्याने पेट विनानी कोछ इत्यादि सर्व सत्य व्यवहार सत्य छे. ॥७१|| भाव ते वर्णादि (वर्णगंध इत्यादि ) तेना बडे जे सत्य ओळखाय ते भाषसत्य [८] जेमके पोपट एक रंगवाळो नथी उतांपण लीलावर्णनी प्रकळताथी (अधिकताथी) पोपट लीला रंगवाळो कहेवाय छे ।। ७२ ॥ ए प्रमाणे सर्व बादरस्कन्धोमा निश्चययी सर्व वर्ण-गंध वगैरे छ, पण पोलबानो व्यवहार तो प्रबलपणा वडेज (जे वर्णादि अधिक होय ते विशेषवडेज ) प्रय . ॥७३।। योग एटले अन्य पदार्थनो संबंध ते संबंधथी

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