Book Title: Lokprakash
Author(s): Vinayvijay, 
Publisher: Sanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad

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Page 598
________________ ३०) ॥ श्री लोकप्रकाशे तृतीयः सर्गः ॥ [सा० २३८) (५६१) ( ८ मुं भावद्वार ) औदयिक १ औपशमिक २ क्षायोपशमिक ३ क्षायिक ४ अने पारिणामिक ५ ए पांच भावो छे, १ ओदयिकभाव - मैना उदयी धता पर्यायरूप परिणामो जेवा के गति, वेद, कषाय, विगेरे, २ औपशमिकभाव - कर्मना उपशमयी थता पर्यायरूप परिणामो औपशमिक सम्य अने औपशमिकचारित्र, ३ क्षायोपशमिकभाष - कर्मना क्षयोपशमयी यता पर्यायरूप परिणामो जेवा के-मत्यादिज्ञान, मत्यादि अज्ञान, चक्षुरादिदर्शन जिरे, ४ क्षायिक भाव-कर्मना क्षयथी थता पर्यायरूप परिणामो केवलज्ञान, केवलदर्शन, क्षायिकसम्यक्त्व, क्षायिकचारित्र अने दानादि पांच लब्धि, ५ पारिणामिकभावअनादि सिद्ध स्वभाव जीवत्व, भव्यत्व, अभव्यत्व, आ पांच भारो पैकी कये कये गुणस्थानके केटला केटला भात्रो होय ते आ भारद्वारमां दर्शावाय है. ( १ ) पहेला मिध्यात्वगुणस्थानके औदयिक १ क्षायोपशमि क २ अने पारिणामिक ३ ए ऋण भावो जीवोमां होय छे, औदयिकभावना मनुष्यगति आदि गतिओ, वेदो, कपायो विगेरे मेदो. क्षायोपशमिक भावना मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान, विभङ्गज्ञान, चक्षुर्दर्शनादि भेदो अने पारिणामिक भाये यव्यजीव मां भव्यत्व तथा जीवत्व अने अभव्यजीवोमां अभव्यत्व, जीवत्व होय छे. (२) बीजा सास्वादन गुणस्थानके - पण औदयिक क्षायोपश मिक अने पारिणामिक ए त्रण भावो होय छे, सिद्धान्तकारमते क्षायोपशमि भावमां ज्ञानविवक्षा छे, अने कर्मग्रन्थकारमते अज्ञान विवक्षा छे पारिणाfromrani अभयत्व अ होतुं नथी विगेरे विशेष विचार संभव प्रमाणे विचारतो. (३) त्रीजा मिश्रदृष्टिगुणस्थानके - पण औदायिक क्षायोपशमिक अने पारिणामिक ए त्रण भावो होय छे, त्यां क्षायोपशमिक भावमा ज्ञान अज्ञान उभय विवक्षा है. बाकी मेदविचारणा पूर्वनी माफक जाणवी. (४) चोथा अविरत सम्यग्दृष्टिगुणस्थान के भावोना ऋण प्रकारो पड़े छे, प्रथम प्रकार -? औदयिक २ क्षायोपशमिक अने ३ पारिणामिक ए प्रमाणे भाव क्षायोपशमिक सम्यक्त्ववाळा जीवोने होय छे. बीजो प्रकार -१ औदकिभाव २ क्षायोपशमिकभाव ३ औपशमिकभाव ४ पारिणामिकभाव ए चार arat औपशमिक सम्यन्त्रवान् जीवोने होय छे. बीजो प्रकार -१ औद विक भाव २ क्षायोपशमिकभाव ३ क्षायिकभाव ४ पारिणामिकभाव ए प्रमाणे चार भाव क्षायिक सम्यक्त्ववान जीवोने होय हे भेदविचारो पूर्वनी माफक•

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