Book Title: Lokprakash
Author(s): Vinayvijay, 
Publisher: Sanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad

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Page 558
________________ ३१४] ॥ श्री लोकप्रकाशे तृतीयः सर्गः (सा० २३४) (५२१) क्रमः पुंस्यारम्भकेऽयं, स्त्री तु क्षपयति क्रमात् । क्लीबपुंवेदहास्यादिषट्कं स्त्रीवेदमेव च ॥ ३२ ॥ क्लीवस्त्वारम्भको नूनं, स्त्रीवेदं प्रथमं क्षिपेत् । पुंवेदं हास्यपट्कं च, नपुंवेदं ततः क्रमात् ॥ ३३ ॥ ततः संज्वलनक्रोधमानमायाश्च सोऽन्तयेत् । ततः संज्वलनं लोभ, क्षपयेद्दशमे गुणे ॥ ३४ ॥ लोभे च मूलतः क्षीणे, निस्तीर्णो मोहसागरम् । विश्राम्यति स तत्रान्तर्मुहु क्षपको मुनिः ॥ ३५ ॥ तथोक्तं भाष्ये ॥ " खीणे खत्रगनियंठो वीसमए मोहसागरं तरिउं । अंतोमुहुत्तमुदहिं, तरिउं थाहे नो क्षय थयो. त्यारबार अन्तर्मुहूर्तकाले आज कमे करीने स्त्रीवेद पण खपावाय छे, स्यारबाद हास्यपदकमे समकाळे खपापवानी शरुआत करे त्यारथी मांडीने ते डास्यादिनुं उपरनी स्थितिनु दलीय पुरुषवेदमां न संक्रमाने पण संबलनकोधमां संकमाये, आपण छये नोकषायो पूर्वोक्तविधिये संवहनक्रोधमां नखता ( संक्रमावता ) अन्तर्मुहूर्तकाले संपूर्ण क्षय पाम्या, तेज समये पुरुषवेवना वन्ध-उदय उदीरणाओनो व्यषच्छेद थाय, अने समयम्यून बेजाथलिकाम बांधेली मूकीने बाकीना दीयानो क्षय थाय पटले में अवैध वाय. पुरुषयेदे श्रेणि अंगीकार करमारने आ प्रमाणे जाणवुं नपुंसकवेवे श्रेणिप्रारंभ तो पहेला खोवेद अने मपुंसक वेदने समकाले खपावे, खविद नपुंसक वेदना क्षयनी साये पुरुषवेदनो बन्धादित्रय व्यवच्छेद थाय, स्वारबाद अवेदी थयो छतो पुरुषवेद भने हास्यात्रिकषट्कने एकसाथे खपावे जो श्रीवेदे श्रेणि प्रारं मैं तो पहेला नपुंसक वेदभे त्यारपछी श्रीवेदने ग्रपा से मने स्त्रीवेदना क्षयनी सायेज पुरुषवेदना बन्धादि व्यवच्छेत्र पामे, अने से पछी अवंदी धको पुरुषषद अमे दास्यादिषट्कने एकसाथे खपायें, आटलो प्रामंगिक विचार कथा पछी, 3 रुपये क्षपकश्रेणि पामेलाने उशीने प्रस्तुत विचार कहीये छीये, हवं संअक्रमकोधने वेदता छता ते क्रोधना कालना त्रण विभागों थाय १ अम्बककरणार. २ किट्टिकरणाचा, ३ किट्टिवेदनावर मेम अभ्वकर्ण करणा वर्ततो चारे पण संज्वलनकषायोगी अन्तरकरणथी उपरनी स्थितिमा दरेक समये अनन्ता अपूर्व स्पर्धको करे छे, वो आ अश्वकर्णकरणायामां वर्ततो पुरुषखेने पण समयम्यून से आपलिकाकाले गुणसंक्रमे करो संवनकोधमां मक्रमाषतो चरमसमये सर्व संक्रमे संकमा छे, अने तेथी सर्व पुरुषवेद य पाम्यो पटले हर्ष अभ्वकर्णकरणाचा पूर्ण थये किट्टीकरणाद्वामां प्रवेश करे छे, त्यां रह्यो छतो चारे पण संज्वलनोना उपर भी स्थितिमा दलीयानी किट्टीओ बनावे छे.

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