Book Title: Lokprakash
Author(s): Vinayvijay, 
Publisher: Sanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad

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Page 583
________________ (५४६) ॥ गुणस्थानकवारे गुणस्थानेषु क्षेत्रस्पर्शनाद्वारविचारः ॥ बार ना एक असङ्ख्यातमा भागमा पर्ते, मात्र केवलिसमुद्घातना त्रीजा पांचमा समये * अनेक असंख्याता भागो लेवा, एटले के समुद्घातना मथमसमये दंडाकार करे त्यारे असंख्यातमा भागमां बीजे समये कपाटाकार करे त्यारे पण असंख्यातमा भागमां अने त्रीने समये मन्यानाकार करे त्यारे अनेक असंळ्याता भागोमां अने चोथे समये लोकपूरण २८ले संपूर्णलोकमां व्यात थाय पछी पांचमाथी संहरणसमयोमा पण तेज प्रमाणे व्युत्क्रम जाणवो, आ प्रमाणे क्षेत्रद्वार विचार जाणवो ॥३॥ ४ स्पर्शनाबार-एफजीवापेक्षया अने नानाजीवापेक्षया एम स्पर्शनाचे मकारनी गणायछे, क्षेत्रद्वारमा जेटलु अवगाढक्षेत्र होय तेटलुंज लेवायने अने स्पर्शना अवगादक्षेत्रथी अधिक होयछे, एकजीवनी अपेक्षाये सयोगिकेवलिभगवन्तोने केवलिसमदातनी अपेक्षाये चतुर्थसमये संपूर्ण चौद राजलोक जे अवगाहक्षेत्र के तेज तेमनु स्पर्शनाक्षेत्र पण जाणवू. त्या स्पर्शना अधिक होइ शकती नयी कारण अलोकक्षेत्रमा धर्मास्तिकापादिनो अभाव छ, इवे नाना (अनेक) जीवोनी अपेक्षाये (१) मिथ्यात्व गुणस्थानवसिजीवो तथा(१३)सयोगिकेवलिगुणस्थानयर्ति जीवो चतुर्दशरज्जु (सर्वलोक)स्पर्शनावाला होय. मिथ्याष्टिजीवोमां मूक्ष्म एकेन्द्रियजीवो सर्वव्यापक होत्राथी सर्वलोकस्पर्शना जाणवी, अने सयोगिकेलि जीवो केवलिसमुद्घातना चोथे समये सर्व लोकव्यापि होवाथी सर्वलोकस्पर्शना जाणवी. (३-४)मिश्रष्टिगुणस्थानति जीवो अने अविरतसम्यग्दृष्टिगुणस्थानवर्तिजीवो प्रत्येके आठ आठ राजलोकनी स्पर्मनाकरे ते आप्रमाणे-आनत (नवी कल्प) विगेरेना देवो अल्प स्नेहादिभाववाळा होवायो स्नेह विगैरे प्रयोजने करीने पण नरकमा जता नथी, जेथी सहस्रार ( आठमु फल्प ) सुधीना देवो पूवंभवना प्रेमवाना नारकीना स्नेहवडे तेनी वेदना शमाववा अगर पूर्वजन्मना वैरीनारफीने वेदनानी उदीरणा करवामाटे त्रीजी नरकपृथ्वी मुधी जायछे. तेमज भच्युत (बारसुं कल्प) कल्पना देवताओ पूर्वजन्मना अगर आ जन्मना स्नेहथी बीजा देवोने अच्युतदेवलोकमां लइ जायछे तेथी मिश्रदृष्टिवाळाओनी तथा अविरतसम्यग्दृष्टिवाळाओनी प्रत्येके आठ.आठ राजलोकनी स्पर्शना घटेछे, अहीं भावना आप्रमाणे जाणवी. सम्यमिध्यादृष्टिगुणस्थानबाळा भवनपतिनिकाय आदिना कोइदेवने पृ नो मित्र अच्युतदेवलोकवासि देव पूर्वना स्नेहथी अच्युतदेवलोके लइ जाय तो अ. च्युतदेवलोकसुधीमा छ अच्चुए ए वचनथी' छ रानलोक यता होवाथी ते मिश्रष्टहिवाळादेवने छराजनी स्पर्शना थायछे अने सम्यगमिथ्याष्टिसासारदेवलोकवासी

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