Book Title: Lokprakash
Author(s): Vinayvijay, 
Publisher: Sanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad

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Page 582
________________ ___३०मुं] ॥श्रीलोकप्रकाशे तृतीयः सर्गः (सा० २३८) (५४५) बेथी नव संख्यासुधीनुं नाम पृथक्त्व कवायछे, जेथी वेकोड ए जघन्यकोटिपृथक्त्व अने नवकोड ए उत्कृष्ट कोटिपृथक्त्व कहेवाय. आ प्रमाणे द्रव्यममाणद्वार जाणवु. २. ३ क्षेत्रप्रमाणबार-(२ थी १२-१४) पहेलं मिथ्यादृष्टिगुणस्थान अने तेर । सयोगिकेवलिगुणस्थान ६ वे मुणस्थान वीने पाकामा वीजा सास्वादन सम्यक्त्वगुणस्थानथीवारमा क्षीणमोह वीतरागछमस्थगुणस्थानसुधीना अगीआर गुणस्थानक तथा चोदमु अयोगिकेवलिगुणस्थान ए वार गुणस्थानकना जीवो प्रत्येक प्रत्येके अने सर्वे पण लोकना असंख्यातमा भागमा वर्त छे. कारण सास्वादनशिवायना बाकीना मिश्रदृष्टि विगैरे अगीआर गुणस्थानको संक्षिपञ्चेन्द्रिय मांज होय. तेमां पण पर्याप्त चारे गतिना संक्षिपञ्चेन्द्रियमा मिश्रदृष्टि गुणस्थान होय, अने अविरतसम्यग्दृष्टिगुणस्थान पर्याप्त अपर्याप्त चारेगतिना संक्षिपञ्चेन्द्रियमा होय छे, देशविरतगुणस्थान पर्याप्तसंक्षिपञ्चेन्द्रिय लियच अने मनुष्यमा होय. अने छट्ठा प्रमनसंयतयी बाकीना गुणस्थान पर्याप्त संक्षिपञ्चेन्द्रियमनुष्यमांज होय अने ने जीवो त्रसनाइयन्तर्गत घणाज स्वल्प स्वस्थानादि क्षेत्रमा वर्तता होवाथी ते अगीआर गुणस्थानकना जीवो पैकी प्रत्येक प्रत्येक गुणस्थानवाचार्नु क्षेत्र लोकासंख्येयभागवर्तिज छ. अने जो के सास्वादनगुणस्थानवाळा केटलाक स्वल्पजीवो करण अपर्याप्त वादर एकेन्द्रिय (पृथ्वीकाय.अपकाय,अने प्रत्येकवनस्पनिकाय)मा तथा करण अपर्याप्तविकलेन्द्रिय (हीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय अने चतुरिन्द्रिय) मां होय छ तथा करण अपर्याप्त अमंशि ( संमूर्छिम ) पंचेन्द्रियतियचोमां पण होय तथा केटलाक. करणअपर्याप्त तथा फरणपर्याप्त संज्ञिपञ्चेन्द्रियमा यथायोग्य चार गनिमां होयछे नो पण ते सास्वादनवर्ति जीवो स्वल्प होवाथी तथा ने जीवोनु क्षेत्र घणु अल्प होवाथी सास्वादनवाला जीवो पण लोकना असंख्यानमा भागमा वर्ते,अन ते यारे गुणस्थानयति सर्वजीवोनु समुदितक्षेत्र लइए तोपण लोकनो असंख्यातमो भागज होय ! [१] पहेला मिध्यादृष्टिगुणस्थानवति जीवो सर्व चौद राजलोक प्रमाण सम्पूर्णक्षेत्रमा व्याप्त होय छे, जो के अन्यगुणस्थाननि जीवोनु क्षेत्र पण तेमा आवी जाय छे तो पण ने अन्यगुणस्थानवनि जीवावगाहक्षेत्रमा पण मिध्यान्वगुणस्थानवति (सूक्ष्म एकेन्द्रिय) जीवो रहेला होवाथी मिथ्यात्वमुणस्थानवतिजीवोन सर्व (चौदराज) लोकक्षेत्र समजवू. (१३) तेरमासयोगिकेवलिगुणस्थानवर्ति जीवोपण केलिसमुद्घातना चौथा समयनी अपेक्षाये सकललोकव्यापि होयचे,ते शिवायना काळनो अपेक्षाये लोक

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