Book Title: Lokprakash
Author(s): Vinayvijay, 
Publisher: Sanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad

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Page 592
________________ ३०) || श्री लोकप्रकाशे तृतीयः सर्गः ॥ [सा० २३८) (५५५) नुं जाणवु, उपशमश्रेणिनो सर्वकाल अन्तर्मुहुर्तज छे, अनेकजीवापेक्षाये पण उप शमश्रेणिगत ए चारे गुणस्थानकोये ज्यारे जीवो विद्यमान होय त्यारे मत्येके जघन्यथी एक समयमात्र पमाय के प्रथम समये प्रवेश करो बीजे समये मरण पाये अने बोजा नवा प्रवेश करे नहि तो एक समय जघन्यथो जाणवो. अने उत्कर्ष ए चारे गुणस्थाननो प्रत्येके तथा समुदित अन्तर्मुहुर्तकाल जावो, ते उपरांत अवश्य अन्तर पड़े छे. ( ८ थी १०-१२ मु क्षपक श्रेणिगत) क्षपकश्रणवर्ति आउनु अ पूर्वकरण, नवसु अनिवृत्तिबादरसंपराय, दशमु मक्ष्मसंपराय अने बारर्मु क्षीणमोहवीतरागछद्मस्थगुणस्थान ए चारे गुणस्थानको एक जीवापेक्षया प्रत्येकं अजयन्योत्कृष्ट स्थितिये अन्तर्मुहूर्त प्रमाण रहे ले, क्षपकश्रेणिये चढेला नीचे उतरता नथी पण अवश्य सफल कर्मक्षये सिद्ध थाय छे, वचमां मरण पण होय नहि, बळी चारेनो समुदितकाल पण अजयन्योत्कृष्ट स्थितिये अन्तर्मुहर्तममाण होय छे, चारमा गुणस्थानना अन्तर्मुहूर्तकालना चरमसमये त्रण घातिकर्मनो क्षय यया पछी सयोगिकेवलिगुणस्थान प्राप्त करे छे. नानाजीवापेक्षया पण ज्यारे क्षपकश्रेणिगत ए चारे गुणस्थानोमां जीवो विद्यमान होय त्यारे प्रत्येक अथवा समुदित ए चारे गुणस्थानको अजघन्योत्कृष्टस्थितिये अन्तर्मुहूर्तप्रमाणना ले, निरन्तर चालतो सम्पूर्ण क्षपकश्रेणिनो काल अन्तर्मुहूर्तममाणज छे. मात्र एक जीवाश्रित अन्तर्मुहूर्तकालयी अनेक जीवाश्रित अन्तर्मुहूर्त सातसमये अधिक समजवं. निरन्तर सर्वविरति पामता जीवो तथा सिद्धिये जता जीवो अविच्छिन्न पणे आठ समय सूधी होय छे, तेम केवलज्ञानमाप्ति पण अविच्छिन्न अ समय सुत्री संभवे छे, ते प्रथमनो समय अन्तर्मुहूर्तमां गणायेल होवाथी बीजाथी आठ सुधीना सात समय अधिक समजवा, अथवा बीजा फोड़ हेतुये सरत समयाधिक अन्तर्मुहुर्तकाल बहुश्रुत भगवन्तोये वर्णव्यो छे, तव श्रीकेवलिभगवान् जाणे. (१३) तेरम सयोगिकेवलिगुणस्थान एकजीवापेक्षया जघन्यथी अन्तर्मुहूर्तप्रमाण जाणचं. केवलज्ञान पामी अन्तर्मुहर्तमां अन्तगरकेवलिं थनाराओ ( मोक्षे जनारा जीवो ) ने आ जघन्य काल जाणत्रो, उत्कर्षथी देशोनपूर्वकोटिफाल, पूर्वकोटिमा आयुयवाळा साधिक आठवर्षंनी वये चारित्र लड़ तरar क्षयकश्रेणिये आरोहण करी केवलज्ञान पामनाराओने उत्कृष्टकाल जाणवो, आ प्रमा

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