Book Title: Lokprakash
Author(s): Vinayvijay, 
Publisher: Sanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 561
________________ - .: (५२४)। गुणस्यानद्वारे बादशक्षीणमोहमुणस्थानप्रसंगतः क्षपकश्रेणिमरूपणम् [बार अर्थ-क्षपक श्रेणिमारंभक पुरूषनो ए अनुक्रम कह्यो, अने श्रेणि आरंभक स्त्री होयतो अनुक्रमे नपुंसकवेद-पुवेद-हास्यादि-६ अने स्त्रीवेद खोवे छे ॥३२॥ अने नपुंसक जीव क्षपाणिनो आरमक होय तो निश्चयथी प्रथम खीयेद् खपावे,अने त्यारवाद अनुक्रमे पुंषद-हास्यादि-६ अने न वेद खंपावे।।३३॥ त्यारबाद ते क्षपफ जीव (पण वेदमांनो कोइपण क्षपकजीव नवमे गुणठाणे) संचलनकोध- संन्वलनमान ने संचलनमायानो क्षय करे,अने त्यारवाद दशमे गुणठाणे संज्वलनलोभनो (अनुक्रमे) क्षय करे ।।३४॥ वे लोभ समूळगो (सर्वश्रा) क्षय थये छते श्रद गायोगकत कर्मप्रकृति टोकामां तो कर छ के-श्रेणिआरंभक श्री होय मी प्रथम नपुंसकवेद, न्यारवाद स्लीवेद खाये, अने न्यारवाद पुरुषवेद ने हास्य पटकनो ममकाळे क्षय थाय. २ पुनः पज कामां को छ के-श्रेणिप्रारंभक नपुंसक होग तो प्रथम म्रीवेद ने नपुंसकवनो समकाळे भय करे, अने न्यारवाद पुरुषवेद ने हास्य षटकनो समकाळे क्षय करे. क भावलिकामा शेष है त्यांमुधी जाणवं, तेजलमये मायाना यन्ध उदय उदीरणानो समकाले ध्यवरछेद थाय , मायानु सतागत कर्म पण ममयोन आपलिकातिकबद्ध मात्रज बछ, वाकीनु सर्व गुणसंक्रमे लोभमा प्रक्षेप्यु (संक्रमाव्यु') त्यास्वाद अनन्तरसमये लोभनु बीजी स्थितिमा रहेलु प्रथमकिटोनुबलीयु खधीमे प्रथम स्थितिकप करे भने थेवे, ते यावत् अन्समुहूर्तसुधी माणयु. संज्वलनमायाना मन्धादि व्यवच्छेद कर्य छते मायानु सर्व दलीयु भमयोन के आवलिकाप्रमाण काले गुणसंकमे करी लोभमां मंक्रमाचे, लोभर्नु प्रथमस्थिति स्प करेलु प्रथमकिट्टीनु' दलीयु दातुं छत्तुं समयाधिक आषलिकामात्र शेष पर्यु स्यारवाद अनन्तरसमये बीजी स्थितिमा रहेढुं लोभनु बीजी किट्टीनु वलीयु खचीने प्रथम स्थिपिरूप यनाथे अने वंदे, इथे ते वेदतो कतो श्रीजी किट्टीना दलीयाने ग्रहण करी मुभम किट्टीओ बनाये, ने यापन प्रथम स्थितिरूप करेला योनी किट्टीना इलोयानो समयाधिक आवलिकामात्र शेष रहे तेजसमये संस्थलन लोभनो बन्ध व्यवच्छेद १, बादरकणायना उपय उदीरणामो व्यवच्छेदर,अने अनिवृसिवावर संपराय नामना नषमा गुणस्थाननो व्यपच्छेद३, एसर्व समकाले थायछे, न्यारवाद अनन्तसमये पीजी स्थितिमा रहेला मुमकिट्टीमा बलीयाने प्रथमस्थितिरूप करे अने घेवे, तेषखते से सूकमसंपराय कषाय छे, अहीं पूर्व कहेली पीजी किट्टीनी चाको रहेली सर्व मालिकाओ पण येवाती पर प्रकृतिओमां स्तिथुक सकमे संक्रमाये, यथायोग्यपणे पहेली किट्टीनी आपलिकाओ बीजी किट्टीमा अने श्रीजीकिट्टीनो आलिकाको श्रीजी किट्टीमा अन्तर्गतपणे भोगाय के लोभनी सम किहीमोने येतो माम संपरायी

Loading...

Page Navigation
1 ... 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629