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अत्यन्त कृतज्ञ हूँ अग्रगामी साध्वीश्री सरोजकुमारीजी की जिनका पूरा-पूरा सहयोग व मार्गदर्शन मुझे बराबर मिलता रहा। कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ साध्वी श्री चन्द्रलेखाजी, साध्वी श्री प्रभावनाजी एवं साध्वी श्री सोमप्रभाजी के प्रति जिनका व्यक्त-अव्यक्त सतत सहयोग मिलता रहा। - मैं नहीं भूल सकती प्रोफेसर S.L. नाहर को जिन्होंने इस कृति को समृद्ध बनाने में अपना समय लगाया। कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ साध्वी श्री शुभप्रभाजी के प्रति, जिन्होंने इस कृति को सजाने, संवारने एवं समृद्ध बनाने में श्रम लगाया है। प्रूफ संशोधन में महिला मंडल अध्यक्षा, पेटलावद, श्रीमति ललिता भंडारी एवं कन्यामंडल संयोजिका, पेटलावद, सुश्री खुशबू मेहता तथा सुश्री शिल्पा मारु, पेटलावद ने निष्ठा से श्रम और समय लगाया है। ___ अन्त में मैं उन सब विद्वद् रचनाकारों की हृदय से आभारी हूँ जिनकी साहित्य स्रोतस्विनी में यत्-किञ्चित् अवगाहन कर मुझे लोगस्स को समझने की दिव्य दृष्टि मिली। जो पढ़ा, समझा, अनुभव किया वही संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया है। प्रेस संबंधी दायित्व के निर्वहन में पेटलावद महिला मंडल की मंत्री श्रीमति प्रमिला कासवा ने जो श्रम और सहयोग किया है, उसे भी भुलाया नहीं जा सकता। आदर्श साहित्य संघ (केशव प्रसाद चतुर्वेदी) ने कृति के टंकण से लेकर प्रकाशन तक के कार्य को शीघ्रताशीघ्र कर मेरे कार्य में सहयोग किया है।
यह कृति पाठक के हृदयाम्बुधि में आनंद की उर्मियों का सृजन करेगी। अस्तित्व बोध के आत्मलक्षी बिंदु से इसके पाठक आत्मा की समता और चित्त की निर्मलता को उत्तरोत्तर विकसित करते रहे। इसी भावना के साथ 'लोगस्स' जो अनंत-अनंत आस्थाओं का केन्द्र है इसके विषय में मेरा स्वकथ्य क्या हो सकता है, केवल नमन...नमन...अन्तहीन नमन। __मैं निरन्तर शील और श्रुत के निर्झर में अभिस्नात होती रहूँ, इन्हीं मंगल भावों के साथ हृदय सम्राट आचार्य श्री महाप्रज्ञजी की निम्नोक्त पंक्तियों से यह स्वकथ्य स्वतथ्य बने, गुरुदेव के इसी आशीर्वाद के साथ
तुम निरुपद्रव, हम निरुपद्रव, तुम हम सब है आत्मा, तव जागृत आत्मा से हम सब बन जाएं परमात्मा। ॐ ह्यं ही हूं हैं हौं हं हः अंतर-मल धुल जाए ॥
चैत्यपुरुष जग जाए ॥
साध्वी पुण्ययशा
इंदौर १७-अगस्त-२०१०