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जिज्ञासा
कायोत्सर्ग में नवकार या लोगस्स ही क्यों गिना जाता है? वह भी कहीं चंदेसु निम्मलयरा तक, कहीं सागरवरगंभीरा तक और कहीं सम्पूर्ण भी-ऐसा किसलिए? पूर्व कालिक साधु जो दीर्घकाल तक काउसग्ग में रहते थे, काउसग्ग में क्या गिनते होंगे?
समाधान
कायोत्सर्ग में आत्मा को अत्यन्त स्थिर कर आत्मा के स्वरूप का चिंतन करना यह मूल मार्ग था। योगी महात्मा काउसग्ग में आत्म स्वरूप का चिंतन करते थे। लोक का स्वरूप सोचते, इस कारण अत्यन्त दीर्घकाल तक काउसग्ग में रहते परन्तु धर्मानुष्ठान करने वाले सर्व साधारण जीव इतना सूक्ष्म पढ़े हुए नहीं होते अतः आसन्न उपकारी इस वर्तमान चौबीसी के चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति के रूप में चतुर्विंशति-स्तव अर्थात् लोगस्स गिना जाता है। लोगस्स की सात गाथाएं हैं-एक-एक गाथा में चार-चार पद हैं। एक-एक श्वास में एक-एक पद बोला जाता है अतः लोगस्स के अट्ठाइस पद होने के कारण २८ श्वासोच्छ्वास उत्पन्न होते हैं। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार धारणा, ध्यान और समाधि-योग के ये आठ अंग हैं। इसी तरह श्वास के अनुसार पदों का उच्चारण भी काउसग्ग का एक स्वरूप है।
संवत्सरी प्रतिक्रमण का जो बड़ा कायोत्सर्ग है, वह एक हजार आठ श्वास के परिमाण वाला है। चंदेसु निम्मलयरा तक गिनने से एक लोगस्स के २५ श्वास होने से ४० लोगस्स के १००० श्वास हुए। तदुपरान्त एक नवकार गिनने से ८ श्वास होते हैं १००० में ८ श्वास मिलाने से १००८ श्वास हो जाते हैं-इस दृष्टि से कुछ परम्पराओं में संवत्सरी के कायोत्सर्ग में लोगस्स का पाठ चंदेसु निम्मलयरा तक गिना जाता है और कुछ परम्पराओं में पूरा लोगस्स बोला जाता है।
इसी प्रकार चातुर्मासिक प्रतिक्रमण का कायोत्सर्ग ५०० श्वासोच्छ्वास का है अतः चंदेसु निम्मलयरा तक गिनते हुए २० लोगस्स गिनने से उपर्युक्त श्वासों की संख्या पूर्ण होती है। पक्खी प्रतिक्रमण का कायोत्सर्ग ३०० श्वासो का है। श्वासो की दृष्टि से १२ लोगस्स गिने जाते हैं इस प्रकार चंदेसु निम्मलयरा तक की गणना श्वासोच्छ्वास से संबंध रखती है। सुबह के प्रतिक्रमण में जो १०८ श्वास का कायोत्सर्ग है वह दुःस्वप्न आदि के निवारण के लिए है वहां सागरवर गंभीरा गिनने से एक लोगस्स के २७ श्वास के हिसाब से १०८ श्वास पूरे होते हैं, इसलिए सागरवरगंभीरा तक गिना जाता है और आत्मशांति हेतु दुःख क्षयादि के निमित्त से ८४ / लोगस्स-एक साधना-२