Book Title: Logassa Ek Sadhna Part 02
Author(s): Punyayashashreeji
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

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Page 154
________________ आचाप भ्यो नमः अ६३यो > स्यो नमः zihy 10 नमर Marairs औ शानाभ्यो भी पर्शजा इस चक्र पर केवल णमो अरहंताणं का दीर्घकाल तक ध्यान करने से क्रोध क्षय होता है तथा कारूण्य भाव पुष्ट होता है। अनाहत चक्र उरोस्थि के पीछे मेरुदण्ड में हृदय के स्तर पर अनाहत चक्र स्थित है। अनाहत का अर्थ होता है आघात रहित। भौतिक जगत् के परे जो दिव्य ध्वनि है, वही समस्त ध्वनियों का स्रोत है, जिसे अनहद नाद कहते हैं। हृदय वह स्थान है जहां वह ध्वनि प्रकट होती है। इस चक्र का प्रतीक १२ पंखुड़ियों वाला नीला कमल है। कमल के मध्य में षट्भुज है, जिसकी रचना दो मिले हुए त्रिभुजों से हुई है। यह वायु तत्त्व का यंत्र है। इसका बीज मंत्र 'य' है। अनाहत चक्र अहैतुक प्रेम का केन्द्र है। इस स्तर पर वसुधैव कुटुम्बकम् एवं सहिष्णुता के भाव का उदय प्रारंभ हो जाता है। इस चक्र में वायु-तत्त्व है। शारीरिक स्तर पर अनाहत का संबंध हृदय, फेफड़े, रक्त परिसंचरण तथा श्वसन प्रणालियों से है। पाण्डु रोग, धड़कन बढ़ना, उच्च रक्तचाप, क्षय रोग, दमा १२८ / लोगस्स-एक साधना-२

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