Book Title: Logassa Ek Sadhna Part 02
Author(s): Punyayashashreeji
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

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Page 160
________________ १४. लोगस्स कल्प औषधिय उपचार, रसायन और भू गृह की शरण में रहकर आदमी अपनी जीर्ण-शीर्ण कोशिकाओं को नया बना लेता है उसी प्रकार मन भी घिस - घिस कर जब पुराना पड़ जाता है। तनावों से टूट-टूट कर जीर्ण-शीर्ण हो जाता है उस बूढ़े मन को भी यौवन दिया जा सकता है कल्प के द्वारा । कल्प की पद्धति है आत्मा के साथ तादात्म्य का अनुभव और आराधना । कायाकल्प की पद्धति बहुत पुरानी है। पुरानी हो जाती है काया तब उसका कल्प किया जाता है। औषधिय उपचार रसायन और भू गृह की शरण में रहकर आदमी अपनी जीर्ण-शीर्ण कौशिकाओं को नया बना लेता है। कौशिकाओं में नया होने की शक्ति सहज है। प्रयोग द्वारा उसका नवीनीकरण और अधिक गतिशील हो जाता है । मन भी घिस - घिस कर पुराना पड़ जाता है । तनावों से टूट-टूट कर जीर्णशीर्ण हो जाता है। उस बूढ़े मन को भी यौवन दिया जा सकता है कल्प द्वारा । कल्प की पद्धति है आत्मा के साथ तादात्म्य का अनुभव और आराधना । कल्प की उपरोक्त व्याख्या करते हुए आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने लिखा है कि “जयाचार्य ने कल्प की पद्धति बतलाई है - ' चौबीसी' - चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति के माध्यम से, उसको मैंने आज के संदर्भ में “ मन का कायाकल्प" में प्रस्तुत किया है जिसमें निमित्त बना प्रेक्षाध्यान शिविर । यदि हम प्राचीन इतिहास की ओर दृष्टिपात करते हैं तो अनेकों कल्प उपलब्ध होते हैं, जैसे- भक्तामर कल्प, उवसग्गहर-कल्प, नमस्कार महामंत्र - कल्प, लोगस्स - कल्प, श्री विद्या- कल्प, वर्धमान विद्या कल्प, रोगापहारिणी - कल्प, मंत्र - कल्प, प्रतिष्ठा - कल्प, चक्रेश्वरी - कल्प, पद्मावती - कल्प, सूरिमंत्र - कल्प, वाग्वादिनी - कल्प आदि । ये सभी मंत्र एवं तंत्र प्रधान ग्रंथ हैं । प्रस्तुत ग्रंथ 'लोगस्स' से संबंधित हैं अतः लोगस्स-कल्प जो प्राचीन आचार्य द्वारा उधृत है, यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ । १३४ / लोगस्स - एक साधना - २

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