Book Title: Logassa Ek Sadhna Part 02
Author(s): Punyayashashreeji
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

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Page 168
________________ उनकी सफलता का रहस्य था ध्यान और स्वाध्याय । तप, जप और ध्यान का अनूठा त्रिवेणी संगम था उनका महान व्यक्तित्व । उनकी सिद्धहस्त योग-साधना को इस ध्यान के एक प्रयोग से ही समझा जा सकता है कि वे कितने सधे हुए और उत्कृष्ट कोटि के योगियों की श्रेणी में थे। कहा जाता है कि वे तीन-चार घंटे तक प्राणों को ब्रह्मरंध्र में रोके रहते और जब वे ध्यान से उपरत होते और प्राणों को नीचे लाते तब वायु इतने वेग से निकलती कि आस-पास में बैठे लोग भयभीत हो जाते। सचमुच वे एक महान योगी थे। रात्रि दो बजे से चार बजे तक नियमित ध्यान के विविध प्रयोगों से अपनी चेतना को भावित और परिष्कृत करने के वे सतत अभ्यासी थे । प्रतिदिन ४०,००० गाथाओं की स्वाध्याय करना उनका दैनिक क्रम था। उन्होंने सात वर्ष, नौ माह ओर इक्कीस दिनों में ८६ लाख ६८ हजार साढ़े चार सौ गाथाओं का स्वाध्याय कर एक अनूठा और प्रेरणादायी उदाहरण प्रस्तुत किया। प्रतिभाशाली साहित्यस्रष्टा जयाचार्य की साहित्य सर्जना बहुत विशाल है। उनकी लेखनी की क्षमता अद्भुत थी । ३०० पद्यों का एक दिन में सृजन कर लेना उनके लिए कोई कठिन काम नहीं था। तभी तो वे भगवती जैसे विशाल ग्रंथ को पांच वर्ष की अवधि में पूर्ण कर सके । राजस्थानी भाषा के वे अद्वितीय साहित्यकार थे । राजस्थान, राजस्थानी भाषा और साहित्य के लिए यह बहुत ही गौरव की बात है । उनके समस्त रचित वाङ्मय का प्रमाण साढ़े तीन लाख पद्यों के परिमित अंकित किया गया है । इतने पद्यों का निर्माण कर धर्म संघ को उन्होंने एक अनुपम निधि प्रदान की। सारा संघ युगों-युगों तक उनका कृतज्ञ रहेगा। उन्होंने तुलनात्मक और शोधात्मक साहित्य भी लिखा है । शायद वे प्रथम विद्वान थे जो उस समय आधुनिक शोध पद्धति का प्रयोग अपनी साहित्य कला में कर सके। आचार्य भिक्षु द्वारा प्रणित आचार दर्शन को आगम साहित्य के आधार पर प्रमाणित करने का जो उपक्रम उन्होंने किया वह आधुनिक पद्धति के शोधकार्य का एक अच्छा नमुना है । १६ वर्ष की अल्पायु में प्रज्ञापना जैसे अभिन्न ग्रंथ को राजस्थानी भाषा में पद्यमय अनुदित कर आपने अद्भुत प्रतिभा कौशल दिखाया। सचमुच उनकी प्रतिभा चामत्कारिक थी । उनकी साहित्य प्रतिभा बचपन से ही प्रस्फुटित थी । ११ वर्ष की किशोरावस्था में संत गुणमाला नामक कृति की संरचना कर उन्होंने समूचे संघ को आश्चर्यान्वित और भाव-विभोर कर दिया । ८० हजार पद्य प्रमाण भगवती की जोड़ आपकी अद्वितीय कृति है । इसके अतिरिक्त निशीथ, आचारांग, उत्तराध्ययन १४२ / लोगस्स - एक साधना - २

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