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निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि जीवन का उद्देश्य सिद्ध स्वरूप में अवस्थित होना है। अतः सिद्ध स्वरूप एवं सिद्ध भगवन्तों का स्मरण, जप व ध्यान करने से परम आत्म शांति का अनुभव होता है। सिद्धत्व आत्मोन्नति तथा पवित्रता का सर्वोत्कृष्ट रूप है। णमो सिद्धाणं, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु-ये अत्यन्त शक्तिशाली और प्राणवान मंत्रपद है। गणाधिपति गुरुदेव के ये सिद्ध मंत्र थे। कभी किसी शोक संतप्त परिवार को संदेश देते समय भी वे “ॐ भिक्षु", “ॐ भिक्षु जय भिक्षु", 'सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु', 'ॐ अ सि आ उ सा नमः' आदि मंत्रों के जप का निर्देश देते रहते थे। निस्संदेह सिद्ध भगवन्तों की उपासना से परमानंद, परमसुख तथा परम समृद्धि अर्थात् परम समाधि की प्राप्ति होती है। संदर्भ १. ठाणं-४/१४६ २. आवश्यक नियुक्ति-५६६, औपपातिक सूत्र-१७८ ३. वही-६००, वही-१७६ ४. वही-६०२, वही-१८० ५. वही-६०५, ६०६, वही-१८३, १८४ ६. वही-६०६, औपपातिक-१८७, भगवती २/१६, १७, वृत्ति पत्र ११२, भगवती जोड़ खण्ड
१, पृ./१६४ ७. महाप्रज्ञ ने कहा-भाग ६, पृ./३६ ८. हिंदुस्तान-२-११-७३ (शशिकांत शर्मा) ६. जीवन विज्ञान १०. गणपति के स्वर, पृ./६७, साधना के श्लाका पुरुष गुरुदेव तुलसी, पृ.१३१, १३३ ११. साधना के श्लाका पुरुष : गुरुदेव तुलसी-पृ./५२, ५३ ।
६६ / लोगस्स-एक साधना-२