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चित्त को पैर से सिर तक क्रमशः शरीर के प्रत्येक भाग पर ले जाएं। पूरे भाग में चित्त की यात्रा करें।
शिथिलता का सुझाव दें और उसका अनुभव करें। प्रत्येक मांसपेशी और प्रत्येक स्नायु शिथिल हो जाएं। पूरे शरीर की शिथिलता को साधें । गहरी एकाग्रता, पूरी जागरूकता ।
इस प्रकार कायोत्सर्ग, शरीर के शिथिलीकरण और ममत्व विसर्जन का प्रयोग है ।
कायोत्सर्ग : वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वैज्ञानिक दृष्टि से कायोत्सर्ग तनाव विसर्जन की प्रक्रिया है । " शरीर शास्त्रानुसार तनाव से अनेक प्रकार की शारीरिक एवं मानसिक व्याधियां उत्पन्न होती हैं, उदाहरणार्थ शारीरिक और मानसिक तनाव से रक्त में यकृत द्वारा ग्रहित शर्करा का बहाव होने से शरीर पर निम्न प्रकार के दुष्प्रभाव देखे गये हैंस्नायु में शर्करा कम हो जाती है ।
लेक्टिक एसिड स्नायु में एकत्रित होती है ।
लेक्टिक एसिड की अभिवृद्धि होने पर शरीर में उष्णता बढ़ती है । स्नायुतंत्र में थकान का अनुभव होने लगता है ।
रक्त में प्राणवायु की मात्रा न्युन हो जाती है ।
पाचन क्रिया मंद या बिल्कुल बंद हो जाती है । • लार ग्रंथि का स्राव मंद हो जाता है ।
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• श्वसन गति तीव्र हो जाती है। • हृदय की गति तीव्र हो जाती है । • रक्तचाप बढ़ जाता है ।
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मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है ।
• थाइरोक्सीन का अधिक स्राव होने लगता है 1
• अनुकंपी नाड़ी तंत्र की अधिक सक्रियता से आवेश बढ़ता है । • एड्रीनल का अधिक स्राव होने से उत्तेजनाएं बढ़ती हैं ।
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किंतु कायोत्सर्ग से एसिड पुनः शर्करा में परिवर्तित हो जाता है | लेक्टिक एसिड का स्नायुओं में जमाव न्युन हो जाता है परिणाम स्वरूप शारीरिक उष्णता युन होती है और स्नायुतंत्र में अभिनव ताजगी का अनुभव होने लगता है । रक्त प्राणवायु की मात्रा में वृद्धि होने के साथ-साथ उपरोक्त दुष्प्रभाव प्रभावहीन हो जाते हैं। रात्रि में बारह बजे से चार बजे तक ध्यान आदि का उत्तम समय माना
में
लोगस्स और कायोत्सर्ग / ७७