________________
१. सालंबन २. निरालंबन
समवसरण में विराजित तीर्थंकर भगवान के रूप और गुणों का ध्यान सालंबन ध्यान कहलाता है और जब मुक्त तीर्थंकर भगवान के स्वरूप का ध्यान किया जाता है तब वह निरालंबन ध्यान कहलाता है।
वीतराग भक्ति के लिए वीतराग चित्त चाहिए। वीतराग चेतना के चार फलित हैं
१. जागरण की चेतना ३. पुरुषार्थ की चेतना
२. समभाव की चेतना ४. ध्यान की चेतना जयाचार्य ने वीतराग प्रभु के ध्यान से प्राप्त होने वाले निम्नांकित बिंदुओं को अर्हत तीर्थंकर की स्तुति में विवर्णित किया है
• वीतराग तुल्यता आती है। • स्वर्गीय सुखोपभोग की प्राप्ति होती है। • मनुष्य भोग की सुविधा मिलती है। • नरेन्द्र देवेन्द्र तथा अहमिन्द्र पद प्राप्त होते हैं।१० • आमर्ष आदि लब्धियां प्राप्त होती हैं।११ • पाप नष्ट होते हैं।१२ • बुद्धि ऋद्धि तथा उल्लास प्रकट होता है।१३ • भव्य जीव मोक्ष या देवलोक जाते हैं।१० • मनुष्य भव में राज्य भोग तथा धन का भंडार पाते हैं।१५
निष्कर्षकतः कहा जा सकता है कि 'चंदेसु निम्मलयरा' मंत्र आत्मज्ञान तथा परमात्म सिद्धि का महान मंत्र है, परंतु यह तभी संभव हो सकता है जब ज्ञान हृदयस्थ होकर आचरण में ढल जाये। महात्मा गांधी ने उचित ही कहा है- “अगर यह सही है और अनुभव वाक्य है तो समझा जाये कि जो ज्ञान कण्ठ से नीचे जाता है और हृदयस्थ होता है, वह मनुष्य को बदल देता है, शर्त यह है कि वह ज्ञान आत्मज्ञान हो।"१६ संदर्भ
सुप्रभातम्-पृ./२३५ २. मन का कायाकल्प-पृ./२३ ३. भीतर का रोग भीतर का इलाज-खण्ड १, शारीरिक चिकित्सा, पृ./८६ ४. वही-खण्ड २, मनोचैतसिक चिकित्सा-पृ./१६४, मंत्र एक समाधान-पृ. ३८२ ५. ओलखणा-पृ./४३, ४४
चदेसु निम्मलयरा / ४३