________________
अर्थात् आनंद केन्द्र पर श्वास का संयम और मन को केन्द्रित करने का फल है
अविद्या का नाश निर्विकल्प अवस्था की प्राप्ति • विषयेच्छा का परिष्कार • अन्तरज्ञान का उच्छवास
पारदर्शी प्रज्ञा के धनी आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने एक बहुत महत्त्व की बात कही है इस चक्र के विषय में, जिसका सार यह है-“आगमों के अनुसार आत्मा के आठ प्रदेश ऐसे हैं, जो प्रकट रहते हैं, अभिव्यक्त रहते हैं, उन पर कोई आवरण नहीं आता। जिन्हें हम मनः चक्र की आठ पंखुड़ियां कहते हैं वे ये ही आठ प्रदेश हैं जिन पर चेतना के पहुंचने से सम्यक्त्व का विकास या जागरण का विकास होता है। उसके पहले जागृति का विकास नहीं होता। यह स्थान नाभि से १२ अंगुल ऊपर अनाहत चक्र (आनंद-केन्द्र) के नाम से विश्रुत है। ग्रंथि, चक्र या कमल-ये तीनों पर्यायवाची हैं।
__ हृदयचक्र से भिन्न जो मन का चक्र, मन का कमल या मन की ग्रंथि (अनंतानुबंधी राग-द्वेष की ग्रंथि) है उसकी कर्णिका में जाकर अपनी सारी चेतना को समेटकर हमारी चिंतन की रश्मियां, हमारी परिणाम धारा और हमारी भावधारा जो सारे शरीर में प्रवाहित हो रही है, उसे संकुचित कर समेटकर जब तक मनः कर्णिका पर केन्द्रित नहीं कर देते हैं तब तक उस ग्रंथि का भेद नहीं होता है और उस ग्रंथि का भेदन हुए बिना जागृति/सम्यक् दर्शन या सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं हो सकती। यह उसकी प्रक्रिया है। अर्थात् आनंद-केन्द्र पर ध्यान राग-द्वेष की ग्रंथि को तोड़ने में सहयोगी है। जिसका परिणाम• आत्मा और शरीर का भेदज्ञान • हमारे अस्तित्व का बोध • हमारी शक्ति का बोध • हमारे अन्तर्जगत् की क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं का बोध
ये सारी बातें हमारे सामने स्पष्ट हो जायेंगी। फिर मूर्छा की स्थिति से हम जागृति की स्थिति में चले जायेंगे। ऐसा हमारे जीवन में यह पहला क्षण आता है यानि इस अपूर्वकरण की स्थिति का अनुभव कर हम अन्तर की यात्रा, जागृति की यात्रा को शुरू कर देते हैं और धीरे-धीरे वीतरागता तक पहुँच सकते हैं। तीर्थंकर और बोधि लाभ
सभी तीर्थंकरों की बोधि प्राप्ति के बाद के भवों की संख्या निम्न प्रकार से हैं
लोगस्स के संदर्भ में बोधि लाभ की महत्ता / ११