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आणी ग्वे ॥ २ ॥ तीर्थजल जरीय कर कलश करी देवता, गावता जावता धर्म उन्नतिरता ॥ तिरिय नर मरने दर्ष उपजावता, धन्य श्रम शक्ति शुचि नक्ति एम जावता ॥ ३ ॥ समकित बीज निज यात्म यारोपता, कलश पाणीमिषे जक्तिजल सिंचता ॥ मेरु सिरोवरे सर्व श्राव्या वही, शक्र उत्संग जिन देखी मन गहगही ||४|| ॥ वस्तु बंद ॥ दंदो देवा हो देवा पाइ
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