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१४४ विमलना विपुल गंगार ए॥१४॥ चाल ॥ हां रे शृंगार थाल चंगेरी, सुप्रतिष्ठ प्रमुख सुन्नेरी ॥ सवि कलश परे मंमाण, जे विविध वस्तु प्रमाण ॥ १५ ॥आरति ने मंगलदीप, जिनराजने समीप ॥ जगवती चूरणी मांही, अधिकार एह उत्साही ॥ १६ ॥ ढाल ॥ अधिक उत्साहशुं हरख जल नीजता ए, नव नव नांतिगुं नक्तिजर कीजता ए ॥ १७॥ चाल ॥ हां रे कीजता नाटारंज, गाजता गुहीर
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