Book Title: Laghu Pooja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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१३४ रशे रे ॥ नृप हरिचंड परे ते जवजल तरशे रे ॥ ६ ॥ काव्यं ।। सकलचेतनजीवितदायिनी, विमल नक्ति विशुफिसमन्विता ॥ जगवत, स्तुतिसारसुखासिका, श्रमहरा म हरास्तु विनोः पुरः॥ इत्यष्टम नै वेद्यपूजा समाप्ता ॥७॥ ॥ ढाल नवमी ॥ नमो नवि
नावगुं ए॥ ए देशी॥ अष्टप्रकारी चित्त नावीए ए आणी हर्ष अपार ॥ नविजन से वीए ए ॥ अष्ट महासिकि संपजे
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