Book Title: Laghu Pooja Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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१२३
॥ जि० ॥ चंचल नाव जे नवि लहे, नित्य रहे वली रम्य ॥ जिप ॥३॥ तैल प्रदेप जिहां नहीं, शुद्ध दशा नहीं दाह । जि० ॥ अपर दीपक ए अरचतां, प्रगटे प्रशम प्रवाह ॥ जि० ॥४॥ जेम जिनमती ने धनसिरि, दीप पूजनथी दोय ॥ जि० ॥ श्रमरगति सुख अनुभवी, शिवपुर पोहोती सोय ॥ जिम् ॥ ५॥ काव्यं ॥बहुलमोहतमित्र निवारकं, खपरवस्तुविकासनमात्मनः ॥ विमलबोध
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