Book Title: Kya yah Satya hai
Author(s): Hajarimal Bhoormal Jain
Publisher: Shuddh Sanatan Jain Dharm Sabarmati

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Page 5
________________ "प्रस्तावना चरम तीर्थपति भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण बाद एवम् विशेषकर आचार्य श्री देवद्धि गणी द्वारा आगम सूत्र लिपीबद्ध किये जाने के बाद कई परिवर्तन अनावश्यक हो गये है जिसमें कई जैन दर्शन के मौलिक सिद्धांत से विपरीत भी है एवम् तदनुसार नवीन सूत्रों की रचना मूलसूत्रों में परिवर्तन प्रक्षिप्तिकरण आदि है। इन परिवर्तित सूत्रों, गाथाओं को जैन सिद्धांत का आधार मानना मुख्य हो गया है और मौलिक आधार गौण हो गया है। जैसे :- उदाहरणार्थ - मूल आगम सूत्रों में मंत्र का स्पष्ट निषेध होने पर भी आज मंत्र आराधना आम बात हो गई है यहां तक कि पवित्र अध्यात्मिक पंच परमेष्टि सूत्र को भी मंत्र के विशेषण से संबोधित किया जाता है। लघु शांति, बृहद शांति आदि ऐसी ही रचनाएं है। आज इस लघु पुस्तिका में परिवर्तित सूत्रों के भूलों का अनावश्यक विपरित गाथाओं का क्रिया सूत्रों का एवम् मान्यता भेद का जो आज तक हमारे ध्यान में आया है संचय किया गया है। पाठकगण से निवेदन है कि बिना किसी पूर्वाग्रह के शांत चित्त से इसे अद्योपयंत पढ़े इसमें दिये गये प्रमाणों, उदाहरणों को ध्यान से देखे, पढ़े, चिंतन करे प्रमाणों का परिक्षण करें और वास्तविकता समझने का प्रयास करें यही एक हार्दिक इच्छा। हमारा लक्ष्य उद्देश्य एक मात्र यही है कि जैन दर्शन की वास्तविकता असलियता को समझे और आराधना के बहाने जो विराधना होती है उससे बचने का प्रयास करें, करावें । यथा शक्य जैन दर्शन के मूल भूत सिद्धांत को उजागर करने का ही प्रयास किया गया है तथापि अज्ञानतावश कोई विपरितता आ गई हो तो एवम् किसी को अविनय जैसा लगे तो मिच्छा मि दुक्कडं " - हजारीमल जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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