Book Title: Kriyasara Author(s): Bhadrabahuswami, Surdev Sagar Publisher: Sandip Shah Jaipur View full book textPage 3
________________ प्रज्वलिन किया । तदनन्तर दशपर्व धारक विशाखाचार्य, प्रोष्टिल, क्षत्रिय, अयसेन. नागसेन, सिद्धार्थ, धृतिसेन, विजय, बुद्धिलिंग, देव एवं धर्मसेनाचार्य ने ५३ षषों तक श्रुत का प्रवचन किया । अनन्तर एमाष्टांग ! २१ भाग न:: TEA, पाण्डव, ध्रुषसंन एवं कंसाचार्यों ने १२३ वर्षों तक श्रुत परम्पर] का प्रचार किया । दशांग के ज्ञाता शुभचन्द्राचार्य, नव अंग ज्ञाता यशोभद्र तथा अष्टांग के ज्ञाता आचार्य भट्र बाहु ने ४७ वर्षों तक अंगज्ञान का प्रवचन किया । इस प्रकार नन्दि संघ-अलात्कार गाण सरस्वतीगच्च की पट्टापली में उल्लेख किया गया है । अतः उपयुक्त पट्टापल्याधार पर अन्य प्रवाह आचार्य भद्रबाहु से प्रवाहित हुआ । उत्तर-परम्परा : त्रयनाम धारो आचार्य अहं दलि द्वारा स्थापित नन्दि संघ में आचार्य माषनन्दि, पंचनाम धारक कुन्दकुन्द. उमास्वामी, लोहाचार्य-३, यशकीर्ति, यशोनन्दि, देवान्दि, अन्यनन्दि, गुणनन्दि, वननन्दि-१, कुमारनन्दि, लोकचन्द्र, प्रभाचन्द्र. मैमिचन्द्र-१, भानुचन्द्र, सिंहनन्दि, वसुनन्दि,१, वीरनन्दि-१, रत्ननन्टि, माणिक्यनन्दि-१, मेघचन्द्र. शान्तिकीर्ति एवं मेरूकोर्नि इत्यादि आचार्यों का उल्लेख है ।। पनार मंत्र में आचार्य लोहाचार्य. विनयंधर, गुप्ति श्रुति, गुप्तिासि. शित्रगुप्त, अर्हदलि, 'मन्दाय, मित्रत्रीर, बलदेव, मित्रक, सिहबल, वीवित. पयसेन. व्याघ्रहप्त, नागइस्ती, जितदण्ड, नन्दिषेण, दीपसेन, धरसेन, (श्रुतावतार से भिन्न) सुधर्मसेन, सिंहसेन, सुनन्दिसेन, इंश्वरसेन, सनन्दिषेण, अभयसेन, सिद्धसेन, भीमसेन, जिनसेन, शान्तिसैन-१, जयसेन, अमितसेन, कीर्तिषेण एवं जिनसेन आदि आचार्य श्रेष्ट हुए । नन्दि संघ पट्टावली- १. भद्रबाहु (द्वितीय), २. गुप्तिगुप्त (२६), ३. पारनन्दी (३६), ४. जिनचन्द (४०), ५. कुन्दकुन्दाचार्य (४५), ६. उमास्वामी (१०१ ), ७. लोहाचार्य (१४२), ८, यशकीति (१५३), १. यशोतन्दी (२११), १०, देवनन्दी (२५८), ११, जयनन्दी (३०८), १२. गुणनन्दी (३५८), १३. वजनन्दी (३६४), १४. कुमारनन्दी ( ३८६), १५, लोक चन्द (४२७), १६. प्रभाचन्द्र (४५३), १५. नेमचन्द्र (४७८), १८. भानुनन्दी (४८७), ५९. सिंहनन्दी (५०८), २०. वसुनन्दी (५२५), २१. बोरनन्दो (५३१), २२. रत्ननन्दी (५६१). २३. माणिक्यनन्दी (५८५), २४. मेघचन्द्र {६०१), २५. शान्तिकोति (६२७), और २६. मेरुकीर्ति (६४२) उपर्युक्त २६ आचार्य प्रवर दक्षिण देशस्थ भट्टिलपुर के पट्टाधीश हुए । उज्जयिनी के सूरि पट्टधरः २५. पहाकीर्ति (६८६), २८. विष्णुनन्दी (७०४). २९. श्रीभूषण (७२६ ). ३२.Page Navigation
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