Book Title: Kriya Parinam aur Abhipray
Author(s): Abhaykumar Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 4
________________ प्रकाशकीय बाह्य- क्रिया और शुभाशुभ परिणामों के तल में बहनेवाली अभिप्राय की धारा का रहस्योद्घाटन करनेवाली प्रस्तुत कृति प्रकाशित करते हुए हम अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं। कुछ ही दिन पहले हम इनकी कृति क्रमबद्धपर्यायः निर्देशिका भी प्रकाशित कर चुके हैं। इस कृति के लेखक पण्डित अभयकुमारजी शास्त्री स्मारक परिवार के ही सदस्य हैं, जिन्हें 16 वर्ष की उम्र से पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामी का तथा 18 वर्ष की उम्र से डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल का सान्निध्य प्राप्त रहा है। इससे पूर्व पूज्य गुरुदेवश्री के प्रवचनों का हिन्दी अनुवाद, अनेक भक्तिगीतों की रचना तथा आत्मानुशासन, लघुतत्वस्फोट, नियमसार कलश और समवसरण स्तुति का पद्यानुवाद कर चुके हैं; परन्तु किसी विषय पर स्वतन्त्र पुस्तक लिखने का उनका यह प्रथम प्रयास है, जिसमें उन्होंने अपने 32 वर्षों के अध्ययनअध्यापन से प्राप्त चिन्तन और लेखन प्रतिभा का उपयोग किया है। इसकी विषय- -वस्तु का आधार मोक्षमार्ग प्रकाशक ग्रन्थ का सातवाँ अध्याय होने पर भी इसमें उनके मौलिक चिन्तन की स्पष्ट झलक मिलती है। -- इस वर्ष दशलक्षण पर्व मुम्बई (दादर) प्रवास के अवसर पर श्री कुन्दकुन्द कहान दिगम्बर जैन तत्त्व प्रचार समिति के अनुरोध पर उपस्थित साधर्मी समाज द्वारा इसे प्रकाशित करके जन-जन तक पहुँचाने की भावना से एक लाख रुपये से भी अधिक राशि का सहयोग प्रदान किया गया है, जिनकी सूची अन्यत्र दी जा रही है । हम उन सभी दानदाताओं के हार्दिक आभारी हैं । अत्यल्प समय में लेजर टाइप सेटिंग हेतु पण्डित रमेशचन्दजी शास्त्री तथा प्रकाशन व्यवस्था का दायित्व निर्वाह करने हेतु श्री अखिल बंसल भी धन्यवाद के पात्र हैं। हमें आशा है कि यह कृति पाठकों के लिए अभिप्राय की भूल समझकर उसमें छिपे हुए गद्दार मिथ्यात्व को समूल नष्ट करने में उपयोगी सिद्ध होगी। Jain Education International ब्र. यशपाल जैन, एम. ए., जयपुर प्रकाशन मंत्री पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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