Book Title: Karmayoga Karnikao Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राथी ते श्री महावीर प्रभुनी पूजाओ ते ते कालमां ते ते देशमा प्रचलित भाषाद्वारा थती इती. पानी पूजामां मुख्यभाव प्रेम होय के अने ते गमे ते भाषाद्वारा बहार आवे छे. प्रभुना गुणोनी श्रद्धा श्रीति भावनाने भक्तो गमे ते भाषाद्वारा बहार प्रगट करे छे. पूर्वे संस्कृत भाषा अने प्राकृत भाषाद्वारा जैनो प्रभुनी पूजानां गानो गाता इता. संस्कृत प्राकृत भाषादिद्वारा प्रभुनी पूजा अने व्रतादि गुणोद्वारा थती प्रभु पूजाद्वारा जैनो प्रभुनी भक्ति करता हता. सोळमा या सत्तरमा सैकाथी गुजराती भाषामां प्रभुनी पूजाओ रचावा लागी. श्रीसकलचंद्र उपाध्याये श्रीसत्तरमेदी पूजा रची ते पहेलांनी पूजाओ रचेली न जाणामां आवे त्यां सुधी गुजराती भाषामा प्रथम पूजाना रचयिता श्रीसकलचंद उपाध्यायनी गणावाना. श्रीसकलचंद्रजी उपाध्यायजी पश्चात श्रीयशोविजयजी उपाध्याय, श्रीज्ञानविमल हरि, श्री विजयलक्ष्मी सूरि, श्री पद्मविजयजी पंन्यास, श्रीरुपविजबनी पंडित, श्री वीरविजयजी पंडित, आचार्यश्री विजयानंद सूरि, फ्यासश्री गंभीर विजयजी, श्रीमान हंसविजयजी, श्रीमान वल्लभविजयजी वगेरे आज सुधी पूजाओ रचनार थया छे. खरतरगच्छ, अंचलगच्छ वगेरेमा गुजराती भाषामां पूजाओना रचनार अनेक मूरि पंडित मुनि थया छे अने भविष्यमा घणा थशे. पूजाओ भणाववानो श्वेतांबर जैनोमां घणो रीवाज छे. सर्व पूजाओमां नव पदनी अने वीश स्थानकपदनी पूजाओ वधारे भणावाय छे. उपाध्यायजी श्री यशोविजयजी, श्रीमद् देवचंदजी अने ज्ञानविपळनी मृरि एत्रण For Private And Personal Use Only

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