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प्रस्तावना
'सप्ततिका प्रकरण' नामक छठा कसंग्रन्थ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने के साथ कर्मग्रन्थों के प्रकाशन का प्रयत्न पूर्ण हो रहा है। एतदर्थं 'श्री मरुधर केसरी साहित्य प्रकाशन समिति' के संचालकों-सदस्यों का हम अभिनन्दन करते हैं कि समय, श्रम और व्ययसाध्य गौरवशाली साहित्य को प्रकाशित कर जैन वाङ् मय की श्रीवृद्धि का उन्होंने स्तुत्य प्रयास किया है ।
पूर्वप्रकाशित पाँच कर्मग्रन्थों की प्रस्तावना में कर्मसिद्धान्त के बारे में यथासम्भव विचार व्यक्त किये हैं । यहाँ कर्मग्रन्थों का परिचय प्रस्तुत है । कर्मयों का महत्व
जैन साहित्य में कर्मग्रन्थों का महत्वपूर्ण स्थान होने के बारे में इतना सा संकेत कर देना पर्याप्त है कि जैनदर्शन में सृष्टि के कारण के रूप में काल, स्वभाव आदि को मान्य करने के साथ कर्मवाद पर विशेष जोर दिया है। कर्म सिद्धान्त को समझे बिना जैनदर्शन के अन्त रहस्य का परिज्ञान सम्भव नहीं है और कर्मतत्व का विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रारम्भिक मुख्य साधन कर्मग्रन्थों के सिवाय अन्य कोई नहीं है । कर्मप्रकृति, पंचसंग्रह आदि कर्मसाहित्य विषयक गंभीर ग्रंथों का अभ्यास करने के लिए कर्मग्रन्थों का अध्ययन करना अत्यावश्यक है । इसीलिए जैन साहित्य में कर्मग्रन्थों का स्थान अति गौरव भरा है ।
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