Book Title: Karm Vignan Part 05 Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay View full book textPage 8
________________ ( ६ ) कर्म विज्ञान पुस्तक प्रकाशन में विशिष्ट सहयोगी उदार हृदय गुरुभक्त डॉ. चम्पालाल जी देशरडा सभी प्राणी जीवन जीते हैं, परन्तु जीना उन्हीं का सार्थक है जो अपने जीवन में परोपकार, धर्माचरण करते हुए सभी के लिए सुख और मंगलकारी कर्तव्य करते हों। औरंगाबाद निवासी डॉ. श्री चम्पालाल जी देसरडा एवं सौ. प्रभा देवी का जीवन ऐसा ही सेवाभावी परोपकारी जीवन है। श्रीयुत चम्पालाल जी के जीवन में जोश और होश दोनों ही हैं। अपने पुरुषार्थ और प्रतिभा के बल पर उन्होंने विपुल लक्ष्मी भी कमाई और उसका जन-जन के कल्याण हेतु सदुपयोग किया। आप में धार्मिक एवं सांस्कृतिक अभिरुचि है। समाज - हित एवं लोकहित की प्रवृत्तियों में उदारता पूर्वक दान देते हैं। अपने स्वार्थ व सुखभोग में तो लाखों लोग खर्च करते हैं परन्तु धर्म एवं समाज के हित में खर्च करने वाले विरले होते हैं। आप उन्हीं विरले पुरुषों में हैं। आपके पूज्य पिता श्री फूलचन्द जी साहब तथा मातेश्वरी हरकूबाई के धार्मिक संस्कार आपके जीवन में पल्लवित हुए। आप प्रारम्भ से ही मेधावी छात्र रहे। प्रतिभा की तेजस्विता और दृढ़ अध्यवसाय के कारण धातुशास्त्र (Metallurgical Engineering) में पी-एच. डी. की उपाधि प्राप्त की । आपका पाणिग्रहण पूना निवासी श्रीमान मोतीलाल जी नाहर की सुपुत्री अ. सौ. प्रभा देवी के साथ सम्पन्न हुआ। सौ. प्रभा देवी धर्मपरायण, सेवाभावी महिला है। जैन आगमों में धर्मपत्नी को " धम्मसहाया" विशेषण दिया है। वह आपके जीवन में चरितार्थ होता है। आपके सुपुत्र हैं - श्री शेखर जी । वह भी पिता की भाँति तेजस्वी प्रतिभाशाली हैं। अभी इन्जिनियरिंग परीक्षा समुत्तीर्ण की है। शेखर जी की धर्मपत्नी सौ. सुनीता देवी तथा सुपुत्र श्री किशोर कुमार और मधुर हैं। श्री चम्पालाल जी की दो सुपुत्रियाँ हैं- कुमारी सपना और कुमारी शिल्पा । कु. सपना वाणिज्य शाखा तथा कु. शिल्पा आर्किटेक्ट के पदवीधर है। दोनों की भी धर्म एवं साहित्य में रुचि है। आप अनेक सेवाभावी सामाजिक संस्थाओं के उच्च पदों पर आसीन हैं। दक्षिण केसरी मुनि श्री मिश्रीमल जी महाराज होम्योपैथिक मेडिकल कालेज, गुरुं गणेश नगर, औरंगाबाद के आप मंत्री हैं। तथा गुरु गणेश नगर संस्था के विश्वस्त हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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