Book Title: Kalpasutram
Author(s): Bhadrabahuswami, Vinayvijay, Mafatlal Zaverchand Gandhi
Publisher: Yashovijay Pustakalay

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Page 340
________________ कल्प दीपिका व्याख्या-अयमेघइए इत्यादि अयमेतावान विशेषा यत्स उक्ताचार्यादिभ्योऽन्योऽपि साधुश्चतुर्थभोजी | समाचारी प्रातर्न तृतीयपौरुष्यान्निष्कम्योपाश्रयात् पूर्वमेव विकटमुद्गमादिशुद्धं भुङ्क्त्वा प्रासुकाहारं, पीत्वा च तक्रादिकं, पतद्ग्रह-पात्रं संलिख्य-निर्लेपीकृत्य संप्रमृज्य च-प्रक्षाल्य सेअत्ति यदि संस्तरेत्-निर्वहेत् तत्र दिने तेनैव भक्तार्थेन भोजनेन परिवसेत् , अथ न संस्तरेत् स्तोकत्वात् तदा द्वितीयवेलायामपि भिक्षेतेत्यर्थः ॥२१॥ वासावासं पज्जोसवियस्स छट्ठभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति दो गोयरकाला गाहावइ कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥ २२ ॥ वासावासं प० अट्ठमभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पति तओगोयरकाला गाहा०भ० पा०नि०प०॥२३॥ व्याख्या-न च प्रातर्गृहीतमेव धारयेत् , सञ्चयसंप्सक्तिसाघ्राणादिदोषसंसर्गात् षष्ठभक्तिकस्य दौगोचरकालाविति ॥२२॥ तत्र अष्टमभक्तिकस्य त्रयः गोचरकालाः ॥ २३ ॥ वासावासं प० विगिट्ठभत्तिअस्स भिक्खुस्स कप्पंति सव्वे वि गोयरकाला गाहा० भ० पा नि० प०॥ २४ ॥ व्याख्या-विगिट्ठभत्तिअस्सत्ति अष्टमादूर्ध्व तपोविकृष्ठभक्तं सव्वेगोअरकालत्ति सर्वे गाचरकालाः चतुरोऽपि प्रहरान ॥ २४ ॥ एवमाहारविधिमुक्त्वाऽथ पानकविधिमाह .॥९॥

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