Book Title: Jivvicharadiprakaransangrah
Author(s): Jindattsuri Gyanbhandar Surat
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 13
________________ रहनेवाले अग्नि-कण, ( उक्का) उल्का-आकाशसे जो अग्निकी वर्षा होती है वह, (असणि) अशनि-वज्रकी अग्नि, (कणग) आकाशमें उड़नेवाले अग्नि-कण, (विज्जुमाईआ) बिजलीकी अग्नि इत्यादि, (अगणिजिआणं) अग्निकाय जीवोंके (भेआ) भेद (निउणबुद्धीए) निपुण बुद्धिसे-सूक्ष्म-बुद्धिसे (नायथा) जानना ॥ ६ ॥ | भावार्थ-काष्ठ आदिकी ज्वाला--रहित अग्नि, अनि की ज्वाला, कण्डेकी अथवा भरसायकी गरम राखमें रहनेवाले है अग्नि-कण, उल्काकी अग्नि, आकाशीय अग्नि-कण, वनकी अग्नि, विद्युत्की अग्नि ये तथा अन्य भी अग्निकाय जीवोंके | भेद सूक्ष्म-बुद्धिसे जानना चाहिये. उम्भामग-उक्कलिया, मंडलि-मह-सुद्ध-गुंजवाया य । घणतणु-वायाईया, भेया खल्ल बाउकायस्स ॥७॥ 8. (उम्भामग) उद्भ्रामक-तृण आदिको आकाशमें उड़ानेवाला वायु, (उक्कलिया) उत्कलिका-नीचे वहनेवाला वायु, है जिससे धूलिमें रेखायें हो जाती हैं. (मंडलि) गोलाकार बहनेवाला वायु, (मह) महावात-आन्धी, (सुद्ध) शुद्ध मन्दघायु, (गुंजवाया य) और गुञ्जवायु-जिसमें गूंजने की आवाज होती है, (घणतणुवायाईया) धनवात, तनुवात आदि, खलु (वाउकायस्स) वायुकायके (भेया) भेद निश्चय हैं ॥७॥ भावार्थ-आकाशमें ऊँचा बहनेवाला, नीचे पहनेवाला, गोलाकार बहनेवाला, आन्धी, मन्द-वायु, गुञ्जारव कर-16 नेवाला वायु, घनवात, तनुवात, ये सब, तथा और भी वायुकायजीवोंके भेद हैं.

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