Book Title: Jiva Vichar Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 4
________________ अर्थः-(जीवा के) जीव ते एक मुक्तिना तथा वीजा संसारी, ए वे प्रकारना बे. तेउंमांना (मुत्ता के ) जेई सकल कर्मरूप पटलोनो क्षय करीने मुक्तिपदने पाल्या ने ते सिक जीवो कहेवाय ने; (अ के) तथा (संसारिणो के०) जेमा संमृतिने पमाय ते संसार कहेवाय डे, एवा संसारनी नरकादि चार गतिमांजे ब्रमण करे नेते संसारी जीवो कहेवाय . ते (संसारी के ) संसारी जीवना एक (तस के ) त्रस ( के) वली वीजा ( थावरा के० ) स्थावर, ए वे प्रकार जे; तेजेमांना स्थावर जीवोना पांच प्रकार नेते आ प्रसाणेःएक (पुढवि के) पृथ्वीकाय, बीजा (जल के०) पाणी ते अप्काय, त्रीजा (जलण के०) ज्वलन ते अग्नि-. काय, चोथा (वाज के०) वायुकाय, पांचमा (वणस्साई के०) वनस्पतिकाय, एवी रीते ए (थावरा केय) स्थावर जीवो पांच प्रकारना (नेया के०)जाणवा ॥२॥ हवे ए स्थावर जीवोना नेदमां अनुक्रमे प्राप्त श्रयेला पृथ्वीकाय जीवोना वेद कहे :- . फलिह मणि श्यण विहुम, हिंगुल हरि

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