Book Title: Jinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Author(s): Dharmchand Jain, Others
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 18
________________ जिनवाणी 10 जनवरी 2011 गाई यह गाथा अविचल मोद करण में-2, सौभाग्य गुरु की पर्व तिथि के दिन में। सफली हो आशा यही कामना पूरण कर दो-2 117 ।। रंग। संकल्प गुरुदेव चरण वन्दन करके, मैं नूतन वर्ष प्रवेश करूँ। शम-संयम का साधन करके, स्थिर चित्त समाधि प्राप्त करूँ।।1।। तन, मन, इन्द्रिय के शुभ साधन, पग-पग इच्छित उपलब्ध करूँ। एकत्व भाव में स्थिर होकर, रागादिक दोष को दूर कसें ।।2।। हो चित्त समाधि तन-मन से, परिवार समाधि से विचीं। अवशेष क्षणों को शासनहित, अर्पण कर जीवन सफल कसें ।।3।। निन्दा, विकथा से दूर रहूँ, निज गुण में सहजे रमण कस। गुरुवर वह शक्ति प्रदान करो, भवजल से नैया पार कर ।।4।। शमदम संयम से प्रीति कसैं, जिन आज्ञा में अनुरक्ति कीं। परगुण से प्रीति दूर करूँ, 'गजमुनि' यों आंतर भाव धरूँ ।।5 ।। (अपने 73 वें जन्मदिवस पर के.जी.एफ. में रचित) गुरुदेव तुम्हारे चरणों में जीवन धन आज समर्पित है, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में।।टेर।। यद्यपि मैं बंधन तोड़ रहा, पर मन की गति नहीं पकड़ रहा। तुम ही लगाम थामे रखना, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में ||1 ।। मन-मन्दिर में तुम को बिठा, मैं जड़ बंधन को तोड़ रहा। शिव मंदिर में पहुँचा देना, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में।।2।। मैं बालक हूँ नादान अभी, एक तेरा भरोसा भारी है। अब चरण-शरण में ही रखना, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में।।3।। अंतिम बस एक विनय मेरी, मानोगे आशा है पूरी। काया छायावत् साथ रहे, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में ।।4।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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