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पंचकल्याणक ज्ञानोदय छंद
विजय विमान से आयेप्रभुजी, नगरी लगती अतिशायी। शुभ वैशाख शुक्ल षष्ठी को, माँ सिद्धार्थी हर्षायी ।।1।। ऊँ हीं वैशाखशुक्लषष्ठयां गर्भमंगलमंडिताय श्रीअभिनंदननाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
माघ शुक्ल बारस को स्वामी, अभिनंदन ने जन्म लिया ।। नृपति स्वयंवर के प्रांगण में, इंद्र शचि सुर नृत्य किया॥2॥
ॐ हीं माघशुक्लद्वादश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीअभिनंदननाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
नश्वर बादल को लख प्रभु ने, संयम अंगीकार किया। माघ शुक्ल द्वादश को लौकांतिक देवों ने गान किया ॥3॥
ऊँ हीं माघशुक्लद्वादश्यां तपोमंगलमंडिताय श्रीअभिनंदननाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पौष शुक्ल की चतुर्दशी को केवलज्ञान उपाया था। समवसरण की रचना करके, धनपति अति हर्षाया था ॥4॥
ऊँ ह्रीं पौषशुक्लचतुर्दश्यां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीअभिनंदननाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
वैशाख शुक्ल षष्ठी के दिन, सम्मेद शिखर से मोक्ष हुआ।
श्री अभिनंदन तीर्थंकर से, भवि जीवों को लक्ष्य मिला ॥5॥
ऊँ हीं वैशाखशुक्लषष्ठयां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीअभिनंदननाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जाप्य
ऊँ ह्रीं श्रीअभिनंदननाथजिनेन्द्राय नमो नमः ।
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