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चंदन सी शीतल मिष्ट, वाणी तेरी । मैं क्रोधाग्नि में दग्ध, भूल रही मेरी || शीतल जिनराज महान, दर्शन सुखकारी । है अनंत गुण की खान, भविजन हितकारी ॥2॥
ऊँ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
निर्मल अक्षय सुख कार, पदवी के धारी । प्रभु मुझमें भरे विकार, नाशो अविकारी ॥
शीतल जिनराज महान, दर्शन सुखकारी ।
है अनंत गुण की खान, भविजन हितकारी ॥3॥
ऊँ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
रत्नों सम गुण की राश, निज शुद्धात है। फिर भी विषयों का दास, बनता आतम है।
शीतल जिनराज महान, दर्शन सुखकारी ।
अनंत गुण की खान, भविजन हितकारी ॥4॥
ऊँ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
षट् रस नैवेद्य जिनेश, तृष्णा उपजावे। अष्टादश दोष विनाश करने हैं आये।
शीतल जिनराज महान, दर्शन सुखकारी ।
है अनंत गुण की खान, भविजन हितकारी ॥5॥
ऊँ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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