Book Title: Jin Pujan
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown
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श्री पार्श्वनाथ जिन पूजन
स्थापना
नरेन्द्र छंद हे पार्श्वनाथ आनंदधाम प्रभु, आज वंदना करते। बाल ब्रह्मचारी जगतारी, नाथ अर्चना करते।। तीन लोक में ढोल बजाकर, देव दंभी गाते। मोही जन को जगा जगाकर, शुभ संदेशा लाते।।
आज मेरे उर आँगन में प्रभु, उत्सव जैसा लगता। त्रिभुवन के स्वामी आयेंगे, निश्चित ही मन कहता है।।
इसीलिए सम्यक् रत्नों के, मैंने चौक पराये। श्रद्धा गृह के प्रमुख द्वार पर, तोरण हार सजाये। प्रभु प्रतीक्षा में रत्नों के, जगमग दीप जलाये। पद प्रक्षालन हेतु स्वर्ण के, थाल यहाँ ले आये।
दोहा आओ पारसनाथ जी, आओ आओ नाथ।
हृदयांगन सूना पड़ा, द्वार खड़ा नत माथ।। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
__ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्र !अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र !अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
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