Book Title: Jin Pujan
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 187
________________ आये गौतम प्रभु पद में शीश धरे।। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा। आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा।।23।। प्रभु वाणी खिरी जैसे फुलवा झरें। भव्य जीवों के जिनवाणी कल्मष हरे।। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा। आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा।।24।। तीस ही वर्ष प्रभु ने विहार किया। आये पावापुरी योग रोध किया।। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा। आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा।।25।। कर्म संपूर्ण को नाश कर सुख लिया। मुक्तिकांता वरी लक्ष्य को पा लिया।। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा। आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा।।26।। है परम पूज्य पावापुरी की धरा। नाथ निर्वाण पाया है पुण्य धरा।। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा। आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा॥27॥ दीप माला हुई ज्ञानज्योति जली। जैसे जन्मांध को रोशनी है मिली।। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा। आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा॥28॥ सारे जग में दीपाली मनाई गई। मोक्षलक्ष्मी मिले भावना की गई।। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा। आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा।।29।। आत्म गुण हेतु हे नाथ पूजा करूँ। एक भव में ही मैं नाथ मुक्ति वरूँ।। 187

Loading...

Page Navigation
1 ... 185 186 187 188