Book Title: Jin Pujan
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 186
________________ सन्मति नाम तत्क्षण रखा मनिवरा। दृष्टि सम्रयक् करो हे मेरे महावीरा।। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा। आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा।।16।। देव संगम परीक्षा को विषधरा बना। उसके फण पर चढ़े नाथ ताली बजा।। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा। आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा॥17॥ धन्य हो वीर स्वामी चरण में नमा। दास हूँ आपका मुझको कर दो क्षमा।। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा। आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा।।18।। एक हाथी मदोन्मत अवश हो रहा। वीर को देखकर शांत ही हो गया।। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा। आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा॥19॥ तब अतिवीर कहने लगे जन सभी। पाँचही नाम सार्थक किये नाथजी।। ___ वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा। आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा॥20॥ तीस ही वर्ष में तप धरा आपने। रुद्र का विघ्न जिनवर सहा आपने।। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा। आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा॥21।। वर्ष बारह प्रभु मौन की साधना। घातिया नष्ट हो ज्ञान केवल घना।। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा। आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा।।22।। दिन छयासठ हुए देशना नाखिरे। 186

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