Book Title: Jin Pujan
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 184
________________ तर्ज -स्रग्विणी छंद जय महावीर अतिवीर पद को न। सन्मति नाथदाता सुवीर न। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा। आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा।।2।। वर्द्धमानेश सिद्धार्थ सुत को नमूं। मात त्रिशला के नंदन को मन से नमूं। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा। आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा।।3।। है पुरुरवासे जीवन कहानी शुरू। भव धरे अनगिनत कैसे गिनती करूँ।। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा। आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा।।4।। पुण्योदय से भरत सुत मारीचि हुये। भाव मिथ्यात्व के वश भटकते रहे। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा। आ गया हँ शरण दीजिये आसरा।।5।। बनबये अर्ध चक्री त्रिपृष्ठ पती। भवारमण ही किया नहीं सुधरी मति।। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा। आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा॥6॥ भाव अज्ञान में कर्म बंधन किया। चार गति में रुला क्रूर सिंह बन गया।। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा। आ गया हूँ शरण दीजिये आसरा।।7।। पुण्यसे ऋद्धि चारण मुनि मिलगये। देशना पाके अश्रु नयन भर गये।। वंदना मैं करूँ वीर तीर्थंकरा। 184

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